लगभग सात साल यानी 2014 लोकसभा चुनाव (Loksabha Elections) के पहले तत्कलीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह (DR Manmohan Singh) नीत संप्रग सरकार के दस सालों के शासन से आजिज जनता बदलाव चाहती थी. उस वक्त उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) में. 'अबकी बार भाजपा सरकार' के उद्घोष के प्रति ऐसा समर्थऩ उमड़ा कि कांग्रेस (Congress) की लुटिया ही डूब गई. मोदी समर्थन के सैलाब में चुनावी रणनीतिकारों की जमात में एक औऱ बदलाव आया औऱ वह था प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) का, जो बीजेपी के प्रचंड बहुमत के साथ ही राजनीति के फलक पर धूमकेतु से उभरे. यह अलग बात है कि कालांतर में वह मोदी विरोधी हो गए. ऐसे में आज पश्चिम बंगाल (West Bengal) विधानसभा चुनाव के नतीजों के लिए चल रही मतगणना में उनके भी बिखर जाने की आशंका प्रबल हो रही है. शुरुआती रुझानों में बीजेपी को 100 सीटों से कहीं ज्यादा पर बढ़त है. ऐसे में बीजेपी तिहाई अंकों का आंकड़ा नहीं छू सकेगी वाले उनके दावे में यह सवाल फिजा में तैर रहा है कि अब उनका क्या होगा? मोदी समर्थन की लहर के बल पर छा जाने वाले प्रशांत (PK) क्या मोदी विरोध रूपी वायरस की चपेट में आकर राजनीतिक रणनीतिकार के काम से विदा ले लेंगे? हालांकि बीजेपी जिस तरह से रुधानों में नीचे खिसक रही है, उससे लगता है कि पीके का दावा सही साबित होने जा रहा है.
मोदी लहर से धूमकेतु सा चमके
मोदी के चुनावी रणनीतिकार बतौर ज्यादातर जींस-टीशर्ट में नजर आने वाला प्रशांत किशोर नाम का शख्स उनके चुनावी कैंपेन से जुड़ा था. हालांकि आम चुनावों के कुछ महीनों बाद ही यह स्पष्ट हो गया कि प्रशांत किशोर किसी वैचारिक या राजनीतिक प्रतिबद्धता की वजह से मोदी के कैंपेन से नहीं जुड़े थे. यह अलग बात है कि पीके के बॉयोडाटा में मोदी के नाम और चेहरे से पैदा हुई सफलता जुड़ गई थी. फिर आया 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव. मूल रूप से बिहार के ही बक्सर के रहने वाले प्रशांत किशोर अब नीतीश कुमार की जदयू के लिए चुनावी रणनीति तैयार कर रहे थे. उस समय नीतीश की राहें बीजेपी से अलग हो चुकी थी और जंगलराज के सरपरस्त लालू यादव की राजद उनकी हमसफर थी. ऐसे गठबंधन के चुनावी कैंपेन से पीके के जुड़ने से यह भी स्पष्ट हो गया कि उनके लिए न केवल विचारधारा महत्वहीन है, बल्कि आम आदमी की सुरक्षा भी मायने नहीं रखती.
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सफलता-असफलता का मिश्रित सफर
बाद के समय में प्रशांत किशोर ने उत्तर प्रदेश और पंजाब में कांग्रेस, दिल्ली में आम आदमी पार्टी आंध प्रदेश में जगनमोहन रेड्डी वगैरह को भी अपनी सेवा दी. कुछ सफलताएं मिली, कुछ असफलताएं इस दौरान उनका पहनावा कई बार बदला. वे कुछ समय के लिए बतौर जदयू उपाध्यक्ष सक्रिय तौर पर राजनीति की पिच पर भी उतरे. यह अलग बात है कि उनकी इस यात्रा से लोगों को भी यह समझ आने लगा कि प्रशांत किशोर की कथित रणनीतियों का जलवा तभी चलता है, जब उन्हें किसी ऐसे शख्स का कैपेंन करना हो जिसके लिए जनता पहले से ही अपना मूड बना चुकी होती है. यदि उन्हें कोई बुरा 'प्रोडक्ट' सौंप दिया जाए तो उनकी रणनीति उसे जनता के बीच बेच नहीं पाती है. अपने हुनर पर उठते सवालों के बीच ही प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ जुड़े.
बंगाल में बीजेपी को ले कर दिया बड़ा दावा
टीएमसी के लिए कैंपेन प्लान करते समय वह जोश और अति उत्साह में दावा कर बैठे कि यदि बीजेपी की सीटें 100 के पार हुईं तो वह अपना काम छोड़ देंगे. हालांकि पहली बार जब उन्होंने ट्विटर पर यह ऐलान किया तो आईपैक के उनके कुछ सहयोगियों ने दावा किया कि पीके ट्विटर छोड़ने की बात कर रहे हैं, लेकिन हाल ही में पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर के सलाहकार बने प्रशांत किशोर ने एक न्यूज चैनल से इंटरव्यू में साफ किया था कि वह चुनावी रणनीतिकार का काम छोड़ देंगे. उन्होंने कहा था कि यदि बीजेपी की 100 से सीटें आती हैं तो उनके काम का कोई मतलब नहीं रह जाता है. उन्होंने कहा था कि मैं जो भी काम कर रहा हूं, जिसकी वजह से आप मुझसे बात कर रहे हैं, रणनीतिकार कह रहे हैं, कोई कुछ और कहता है, जो भी मैं काम कर रहा हूं उसका कोई मतलब नहीं रह जाता है, यदि बीजेपी की यहां 100 से ज्यादा सीटें आती हैं.
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अब क्या करेंगे प्रशांत किशोर?
ऐसे में जब आज बंगाल की विधानसभा सीटों पर मतगणना जारी है और शुरुआती रुझानों में बीजेपी 100 के पार पहुंचती दिख रही है. ऐसे में यह सवाल उठना शुरू हो गए हैं कि क्या प्रशांत किशोर भविष्य में चुनावी रणनीतिकार की भूमिका में नजर आएंगे या फिर अपने दावे के मुताबिक बीजेपी के 100 से ज्यादा सीटें जीतने पर अपनी इस भूमिका से संन्यास ले लेंगे? इसका पता भी आने वाले कुछ समय में ही चल जाएगा.
HIGHLIGHTS
- बंगाल चुनाव के नतीजों के साथ जुड़ा प्रशांत किशोर का भविष्य
- दावा था कि बीजेपी राज्य में तिहाई अंक में सीटे नहीं ला सकेगी
- अब सवाल उठना लाजिमी है कि प्रशांत का भविष्य क्या होगा