एक ऐसा व्यक्ति जो 'जीने लायक धरती का निर्माण' करना चाहते थे। दुनिया कहती थी कि वे मिसाइल बनाते थे लेकिन पैगाम-ए-मोहब्बत के सिवा और कुछ नही दिया एक ऐसा राष्ट्रपति जो 'आम लोगों के राष्ट्रपति' थे। जी हां कुछ ऐसे थे हमारे ग्यारवें राष्ट्रपति अबुल पकिर जैनुलाआब्दीन अब्दुल कलाम यानि अब्दुल कलाम।
सिद्धांतों पर चलने वाले कलाम जिन्होंने अंतिम सांस तक देश की सेवा की बात की। जिन्होंने युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए स्कूलों-कॉलेजों में छात्रों के सेमिनारों में जाते थे। जिससे की युवा पीढ़ी को समृद्ध किया जा सके।
अब्दुल कलाम युवाओं को बताया करते थे कि हमें लोग तभी याद रखेंगे जब हम आने वाली पीढ़ी को एक समृद्ध और सुरक्षित भारत दे पाएं। इस समृद्धि का स्रोत आर्थिक समृद्धि और सभ्य विरासत होगी।
शिलॉन्ग में आखिरी भाषण से पहले उन्होंने पंजाब के एयर फोर्स कैंप पर हुए हमले को प्रदूषण से जोड़ते हुए कहा था कि ऐसा लगता है कि मानव निर्मित ताकतें धरती पर जीवन के लिए उतना ही बड़ा खतरा हैं जितना प्रदूषण।
जो बात लोगों को समझ में नहीं आती है उसके लिए लोग मुहावरा कहते हैं- रॉकेट साइंस है क्या? उसी रॉकेट साइंस को डॉ कलाम लाखों स्कूली बच्चों के बीच ले गए और समझाने में कामयाब हुए।
कुछ लोग उन्हें सफल वैज्ञानिक मानते हैं तो कुछ लोग सफल राष्ट्रपति। लेकिन देखा जाए तो न तो वे वैज्ञानिक के खांचे में फिट बैठते थे न ही राजनेता के सांचे में। वे इन सब से ऊपर एक सफल इंसान थे।
डॉ कलाम के कार्यकाल में एक दो विवाद भी सामने आए थे। जब राज्यपाल बूटा सिंह की सिफारिश पर बिहार में 2005 में राष्ट्रपति शासन लगाया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज कर दिया। डॉ कलाम 2002 से लेकर 2007 तक भारत के राष्ट्रपति रहे थे।
एयरोनॉटिकल इंजीनियर के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले डॉ कलाम हिन्दुस्तान की दो बड़ी एजेंसियों डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) के प्रमुख रहे। दोनों एजेंसियों में उन्होंने बहुत बहुत ही बढ़िया काम किया।
भारत के पहले रॉकेट एसएलवी-3 को बनाने में डॉ कलाम ने अहम भूमिका निभाई। वहीं पोलर सैटेलाइट लॉन्च वेहिकल (पीएसएलवी) बनाने में भी उनकी भूमिका काफी अहम थी।
जिसके बाद भारत रत्न कलाम ने इंडिया के पहले मिसाइल पृथ्वी और फिर उसके बाद अग्नि को बनाने में भी उनका अहम योगदान रहा। साल 1998 में भारत ने जो परमाणु परीक्षण किया था उसमें भी डॉ कलाम की विशिष्ट भूमिका थी। उस समय वे डीआरडीओ के प्रमुख थे।
स्कूली दिनों में अखबार बांटकर पढ़ाई करने वाले कलाम देश के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे। 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में मछुआरा परिवार में कलाम का जन्म हुआ था। पेशे से नाविक कलाम के पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे। वे मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे।
भारतीय मिसाइल कार्यक्रम में खास भूमिका के लिए उन्हें 'मिसाइल मैन' कहा जाता है। स्वदेशी तकनीक से बनी अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में उनका बहुत योगदान रहा।
इसरो में परियोजना निदेशक के रूप में भारत के पहले स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी)-3 के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डॉ कलाम साल 1992 से 1999 के बीच प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार और डीआरडीओ सचिव भी रहे। 1998 के पोखरण-2 परमाणु परीक्षण में उन्होंने अहम भूमिका निभाई।
साल 1990 में पद्म भूषण और 1997 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया। कलाम 2002 से 2007 तक भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे।
डॉ कलाम ने चार किताबें लिखीं: 'विंग्स ऑफ़ फायर', 'इंडिया 2020- ए विज़न फ़ॉर द न्यू मिलेनियम', 'माई जर्नी' तथा 'इग्नाटिड माइंड्स- अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया'।
इतना ही नहीं कलाम के लिए उपलब्धियां लिखी जाए तो जगह कम पड़ जाए। डॉ कलाम उस पंक्ति को बोल कर उस ब्रह्मांड में चले गए जिसके लिए वे कहते थे, 'आसमान की तरफ देखिए। हम अकेले नहीं हैं। पूरा ब्रह्मांड हमारा दोस्त है।' कलाम उन राष्ट्रपतियों में थे जिन्होंने पद की नई परिभाषा गढ़ी।
Source : Abhiranjan Kumar