फखरुद्दीन अली अहमद भारत के 5वें राष्ट्रपति थे। बतौर राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली 1974 से 1977 तक पद पर रहे। फ़ख़रुद्दीन अली अहमद के रूप में जब दूसरा मुस्लिम व्यक्ति भारत का राष्ट्रपति बना तो यह स्पष्ट हो गया कि भारतीय संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता का विश्व में कोई सानी नहीं है।
आइए जानते हैं उनके राजनैतिक करियर के बारे में-
राजनीतिक करियर
1925 में इंग्लैंड में उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरु से हुई। तभी वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी शामिल हो गये और भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी हिस्सा लिया। 1942 में भारत छोडो अभियान में उन्हें गिरफ्तार किया गया और उन्हें साढ़े तीन साल जेल में रहने की सजा सुनाई गयी थी।
1936 से वे असम प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य और 1947 से 74 तक AICC के सदस्य थे और साथ ही 1938 में गोपीनाथ बोर्डोलोई की मिनिस्ट्री में फाइनेंस, रेवेन्यु और लेबर मिनिस्टर भी बने हुए थे।
आज़ादी के बाद राज्य सभा (1952-1953) में उनकी नियुक्ती की गयी और इसके बाद वे असम सरकार के अधिवक्ता-प्रमुख भी बने। जानिया निर्वाचन क्षेत्र से 1957-1962 और 1962-1967 में वे असम वैधानिक असेंबली से कांग्रेस की टिकेट लेकर चुने भी गये थे।
बाद में, 1967 में और फिर दोबारा 1971 में असम के बारपेटा निर्वाचन क्षेत्र से वे लोक सभा के लिए चुने गये। सेंट्रल कैबिनेट में उन्हें खाद्य और कृषि, सहयोग, शिक्षा, औद्योगिक विकास और कंपनी लॉ जैसे विभाग सौपे गये थे।
फखरुद्दीन अली अहमद भारत के राष्ट्रपति के रूप में अपने पांच साल के कार्यकाल पूरा करने में असमर्थ थे क्योंकि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के दौरे से लौटने के तुरंत बाद उन्हें दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उन्होंने 11 फरवरी, 1977 को राष्ट्रपति भवन में दिल्ली में अपने अंतिम सांस ली, वह अभी भी कार्यालय में थे। वह 71 वर्ष के थे।
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अपातकाल
39 वर्ष पूर्व आज ही के दिन 25 जून की आधी रात को भारत में आपातकाल लगाया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस कदम को भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे मैला पन्ना बताया जाता है। इस दौरान राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली पर भी कई सवाल उठे थे।
12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी के लोक सभा चुनाव को रद्द घोषित कर दिया। उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप साबित हुए थे। उन्हें कुर्सी छोड़ने और छह साल तक चुनाव ना लड़ने का निर्देश मिला। लेकिन इंदिरा गांधी ने अपनी ताकतवर छवि और गर्म मिजाज दिमाग से आपातकाल का रास्ता निकाला।
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25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने संविधान की धारा-352 के अनुसार आपातकालीन स्थिति की घोषणा कर दी। यह एक ऐसा समय था जब हर तरफ सिर्फ इंदिरा गांधी ही नजर आ रही थीं। उनकी ऐतिहासिक कामयाबियों के चलते देश में ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ का नारा जोर शोर से गूंजने लगा।
11 फरवरी 1977 को नई दिल्ली में उनकी मृत्यु हुई ।
Source : News Nation Bureau