न्यायमूर्ति वीएस सिरपुरकर की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जांच आयोग ने तेलंगाना में एक महिला डॉक्टर के कथित बलात्कार और हत्या में गिरफ्तार चार आरोपियों की 2019 की मुठभेड़ को फर्जी पाया है. इसके साथ ही इस फर्जी मुठभेड़ में शामिल सभी 10 पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का आरोप लगाया गया है. जांच पैनल ने इस एनकाउंटर में शामिल वी. सुरेंद्र, के. नरसिम्हा रेड्डी, शेख लाल मधर, मोहम्मद सिराजुद्दीन, कोचरला रवि, के. वेंकटेश्वरुलु, एस. अरविंद गौड़, डी जानकीराम, आर. बालू राठौड़ और डी. श्रीकांत पर मुकदमा चलाया जाए.
इन सभी की ओर से किए गए कृत्य के लिए आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत आता है, क्योंकि सबूतों के विश्लेषण से पता चलता है कि इनमें से सभी की जो कुछ भी किया गया था, वह बलात्कार के संदिग्ध आरोपियों को मारने के इरादे से किया गया था. इस मामले पर सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने तेलंगाना सरकार के वकील की आपत्तियों को खारिज करते हुए सीओआई की रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई के लिए तेलंगाना हाईकोर्ट को पूरी लंबित कार्यवाही भेज दी.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गठित की गई थी जांच कमेटी
अपनी 387 पन्नों की रिपोर्ट में आयोग ने कहा है कि चार आरोपियों में से तीन तेलंगाना सरकार के दावे के उलट नाबालिग थे, जबकि पुलिस को सबूतों को नष्ट करने या वापस लेने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि "इस तरह की विसंगतियों से केवल एक ही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि घटना के दृश्य के साथ या तो छेड़छाड़ की गई है या सुविधा के अनुरूप दृश्य बनाया गया.
गौरतलब है कि इस मामले के चार संदिग्ध जोलू शिवा, जोलू नवीन और चिंताकुंटा चेन्नाकेशवुलु, मोहम्मद आरिफ 6 दिसंबर, 2019 को रंगारेड्डी जिले के चटनपल्ली गांव के बाहरी इलाके में पुलिस द्वारा एक मुठभेड़ में मारे गए थे. गौरतलब है कि इससे पहले महिला डॉक्टर के साथ विभत्स्य अपराध के खिलाफ देश भर में विरोध प्रदर्शन और कैंडल मार्च का सिलसिला शुरू हो गया था. इस दौरान चारों तरफ से आरोपियों के खिलाफ जल्द से जल्द कार्रवाई की मांग की जा रही थी. इसके बाद इस फर्जी एनकाउंटर में तेलंगाना पुलिस ने कथित चार आरोपियों को मारने का दावा किया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट (SC) ने जस्टिस सिरपुरकर के नेतृत्व वाली CoI की स्थापना की थी, जिसमें बॉम्बे HC की पूर्व जज रेखा बलदोटा और सीबीआई के पूर्व निदेशक डी आर कार्तिकेयन को भी शामिल किया गया था.
ये भी पढ़ें- चारधाम यात्राः यूट्यूबर्स और ब्लॉगर को किया जाएगा प्रतिबंधित, यह बड़ी वजह आई सामने!
सच्चाई को छिपाने के लिए किया गया एनकाउंटर
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि पुलिस की थ्योरी विश्वास करने के लायक नहीं है कि मृतक संदिग्धों ने पुलिसकर्मियों पर हमला किया और भागने का प्रयास किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस अधिकारियों कीओर से जानबूझकर उन पर गोली चलाने की कार्रवाई उचित नहीं है. पैनल ने पुलिस के दावे को खारिज करते हुए कहा है कि जिन आरोपियों को पहले से बंदूक चलाने का कोई अनुभव नहीं था, उन्होंने उनकी आंखों में कीचड़ फेंककर पुलिस के हथियार छीन लिए और भागते समय गोलियां चला दीं, ये कैसे संभव है. इसके साथ ही रिपोर्ट में कहा गया है कि मुठभेड़ स्थल से कोई गोलियां या खर्च किए गए कारतूस नहीं मिलने से साफ होताी है कि किसी भी पुलिस वाले को कोई गोली नहीं लगी. इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि दो पुलिसकर्मियों को लगी चोटों की प्रकृति को देखने से ये भी पता चलता है कि उन्हें तीन दिनों के लिए आईसीयू में भर्ती करने की कोई आवश्यकता नहीं थी. पैनल ने कहा कि घटना के कुछ अधूरे वीडियो फुटेज उसके सामने पेश किए गए. अधूरे वीडियो पर जब राज्य से पूछा गया तो कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि पूरे फुटेज को क्यों नहीं रखा गया. आयोग का मानना है कि उपरोक्त खामियों के अलावा, ऐसा लगता है कि सच्चाई को उभरने से रोकने के लिए जानबूझकर इन एनकाउंटर को अंजाम दिया गया.
HIGHLIGHTS
- मुठभेड़ में शामिल सभी 10 पुलिस वालों के खिलाफ केस चलाने की अनुशंसा
- सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट में सुनवाई करने के लिए केस किया ट्रांसफर
- पुलिस मुठभेड़ में मारे गए थे महिला डॉ. से बलात्कार के सभी चार संदिग्ध
Source : News Nation Bureau