सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में सोमवार को 200 से अधिक जनहित याचिकाओं पर सुनवाई होगी. इस दौरान विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह भी शामिल है. मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ सीएए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली है, जिसके अधिनियमन की वजह से देशभर में व्यापक पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ था. शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई कार्य सूची के मुताबिक मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने सुनवाई के लिए 220 याचिकाएं पोस्ट की हैं, जिनमें सीएए के खिलाफ इंडियन यूनियन ऑफ मुस्लिम लीग की प्रमुख याचिका भी शामिल है. इस दौरान शीर्ष अदालत में कई वर्षों से लंबित पड़ी जनहित याचिकाओं पर भी सुनवाई तय की गई है.
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CJI की अगुवाई वाली पीठ कुछ अन्य जनहित याचिकाओं पर भी सुनवाई करने वाली है, जिसमें एक संगठन, वी द वूमेन ऑफ इंडिया द्वारा दायर याचिका भी शामिल है. इसमें प्रभावितों को प्रभावी कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए देशभर में घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम के तहत पर्याप्त बुनियादी ढांचा तैयार करने की मांग की गई है. इस याचिका में कहा गया था कि 15 साल से अधिक समय पहले कानून बनाए जाने के बावजूद घरेलू हिंसा भारत में महिलाओं के खिलाफ सबसे आम अपराध है.
गौरतलब है कि 18 दिसंबर 2019 को याचिकाओं के बैच पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के संचालन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था, लेकिन इसके साथ ही केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया गया था. दरअसल, संशोधित कानून हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदायों से संबंधित गैर-मुस्लिम अप्रवासियों को नागरिकता पाने का अधिकार तो देता है, लेकिन मुस्लिमों को इससे वंचित रखा गया है. ये कानून उन लोगों पर लागू होगा, जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आए थे. इस शीर्ष अदालत ने केंद्र को नोटिस जारी कर जनवरी 2020 के दूसरे सप्ताह तक जवाब मांगा था. हालांकि, COVID-19 की वजह से लगे प्रतिबंधों के कारण मामला पूर्ण सुनवाई के लिए नहीं आ सका, क्योंकि इसमें बड़ी संख्या में वकील और वादी शामिल थे.
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सीएए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) का तर्क है कि यह अधिनियम समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और धर्म के आधार पर बहिष्कार करके अवैध प्रवासियों के एक वर्ग को नागरिकता प्रदान करने का इरादा रखता है. अधिवक्ता पल्लवी प्रताप के माध्यम से आईयूएमएल द्वारा दायर याचिका में कानून के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की गई है.
वहीं, कांग्रेस नेता जयराम रमेश द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यह अधिनियम संविधान के तहत परिकल्पित मूल मौलिक अधिकारों पर एक "बेरहम हमला" है और "समानता को असमान" मानता है. उन्होंने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि "आक्षेपित अधिनियम दो वर्गीकरण बनाता है. अर्थात ये लोगों के बीच धर्म और भूगोल के आधार पर वर्गीकरण करता है और दोनों वर्गीकरण पूरी तरह से अनुचित हैं और आक्षेपित अधिनियम के उद्देश्य के लिए कोई तर्कसंगत संबंध साझा नहीं करते हैं. अर्थात आश्रय, सुरक्षा प्रदान करना और उन समुदायों को नागरिकता देना जो अपने मूल देश में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना कर रहे हैं.
इसके अलावा राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी सहित नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई अन्य याचिकाएं दायर की गई हैं.
Source : News Nation Bureau