कोरोना (Corona) संक्रमण काल में क्वाड (Quad) का शुक्रवार को वर्चुअल शिखर सम्मेलन हो रहा है. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi), अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden), ऑस्ट्रेलियाई पीएम स्कॉट मॉरिसन (Scott Morrison) और जापान पीएम सुगा योशिहिडे (Suga YoshiHide) शामिल होंगे. इस बैठक को लेकर चीन (China) के पेट में सबसे ज्यादा दर्द हो रहा है. इस बैठक में पहली बार दुनिया के चार ताकतवर लोकतांत्रिक देशों के नेता कोरोना वैक्सीन, तकनीकी सहयोग, क्लाइमेट चेंज जैसे मुद्दों पर चर्चा करेंगे. हालांकि माना जा रहा है कि सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा चीन का हो सकता है. आज हो रहे शिखर सम्मेलन में क्वाड चीन को कड़ा संदेश देगा कि वह अब मौजूद रहने वाला है और चीन के दबदबे के आगे नहीं झुकने वाला है. क्वाड इस बैठक के जरिए स्पष्ट करेगा कि उसने अनजाने में 15 साल पहले चीन को इसकी विदेश नीति पर वीटो लगाने का मौका दिया था, वैसा अब दोबारा नहीं होगा. गौरतलब है कि 2007 में पहली बार क्वाड देशों ने बैठक की थी, लेकिन चीन की दखलअंदाजी के चलते ये गठबंधन ठीक तरीके से नहीं चल पाया.
2007 में मनीला में हुई थी पहली क्वाड बैठक
हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक एक पूर्व भारतीय विदेश सचिव ने बताया कि आज होने वाले शिखर सम्मेलन की असली परीक्षा यही है कि क्या यह दुनिया को एक विश्वसनीय संदेश दे सकता है कि लोकतांत्रिक शासन आधारित देश साझा राजनीतिक और आर्थिक मूल्यों के साथ हाथ मिला सकते हैं. वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर की पहली क्वाड ग्रुप की बैठक आसियान रिजनल फोरम के साथ-साथ 2007 में मनीला में आयोजित की गई. इसी साल मालाबार के बैनर तले नौसेना के एक सैन्यभ्यास का बंगाल की खाड़ी में आयोजन किया गया. इसमें क्वाड के सदस्य देश और सिंगापुर ने भाग लिया, लेकिन चीन के पेट में दर्द हुआ और इसने सभी देशों को डिमार्च किया और पूछा कि क्या ये क्वाड के जरिए एक बीजिंग-विरोधी गठबंधन की स्थापना की जा रही है. इसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन को बताया कि क्वाड का सहयोगात्मक सुरक्षा और रक्षा से कोई लेना-देना नहीं है. हालांकि फिर संयुक्त सैन्य अभ्यास द्विपक्षीय हो गया.
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15 सालों से गहरा सबक लिया क्वाड ने
क्वाड की बैठक में कुछ बातें स्पष्ट हो जाएंगी. इसमें एक ये कि लोकतांत्रिक देश भारत को वैश्विक स्तर पर नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. भारत ने अब दिखाया है कि अगर राष्ट्रीय सुरक्षा की बात होती है तो वह कोई समझौता नहीं करता है. दूसरी बात ये है कि क्वाड सम्मेलन दिखाएगा कि अमेरिका वैश्विक हित के चलते अपने जैसे देशों संग गठबंधन बनाना चाहता है. तीसरा ये है कि शिखर सम्मेलन स्पष्ट रूप से एक संदेश भेजेगा कि यह एक विस्तारवादी चीन को लोतांत्रिक देशों की विदेश नीतियों पर वीटो करने की अनुमति नहीं देगा. गौरतलब है कि बीते 15 सालों में चीन ने दिखाया है कि जब अगर बात इसकी मूल नीतियों की हो तो ये कोई भी समझौता नहीं करता था. वहीं, अमेरिका अकेले दौड़ने वाले देश के रूप में आगे बढ़ा है.
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बाइडन सरकार भी चीन के खिलाफ सख्त
दूसरी तरफ अमेरिका की जो बाइडन सरकार चीन के खिलाफ लगातार सख्ती दिखा रही है. अमेरिका के प्रभावशाली सीनेटरों ने सीनेट में कई प्रस्ताव पेश कर दक्षिण चीन सागर में बढ़ती सैन्य गतिविधियों के लिए चीन की आलोचना की है. साथ ही बीजिंग की आर्थिक गतिविधियों से निपटने के लिए भी प्रस्ताव पेश किया है जिससे वैश्विक बाजार के साथ-साथ अमेरिकी व्यवसाय को नुकसान होता है.
सीनेटर रिक स्कॉट, जोश हाउले, डैन सुलीवान, थॉम टिलीस और रोजर विकर ने बुधवार को प्रस्ताव पेश किया. प्रस्ताव में अमेरिका की नौसेना और तटरक्षक बल के प्रयासों की सराहना की गई जिसमें उन्होंने नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित की और स्पष्ट संदेश दिया कि चीन की वैध समुद्री सीमा के परे उसकी विस्तारवादी नीतियों को अमेरिका बर्दाश्त नहीं करेगा.
HIGHLIGHTS
- 15 साल पहले मनीला में हुआ था क्वाड शिखर सम्मेलन
- चीन के विरोध से निष्क्रिय हो गया था, लेकिन अब एक
- मुद्दे कई, लेकिन चीन पर तैयार होगी आक्रामक रणनीति