संसद का मॉनसून सत्र कृषि बिल समेत अन्य मसलों पर विपक्ष को मोदी सरकार पर हमलावर होने का मौका दे गया. हालांकि कांग्रेस (Congress) के लिए संसद का आखिरी दिन तो मानो मुंह मांगी मुराद वाला साबित हुआ. बुधवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट सदन में पेश की. इस रिपोर्ट में सामरिक उत्पादों की आपूर्ति करने वाली विदेशी कंपनियों से होने वाले सौदों में ऑफसेट प्रावधानों पर कैग की कठोर टिप्पणी थी. इसी को आधार बना कर कांग्रेस ने गुरुवार को मोदी सरकार पर Rafale सौदों को लेकर नए सिरे से हमला बोला. P Chidambaram और Randeep SIngh Surjewala ने अपनी ट्वीट में कहा है कि सौदे के तहत प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन ने नहीं किया है. दोनों कांग्रेसी नेताओं ने इस मसले पर दो ट्वीट किया है. इसका मजमूं यही कहता है कि राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस के आरोप हवा में नहीं थे.
CAG finds that the vendors of the Rafale aircraft have not confirmed the transfer of technology under the offset contract
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) September 24, 2020
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चिदंबरम और सुरजेवाला ने दागे सवाल
पी चिदंबरम ने गुरुवार को ट्वीट करते हुए कहा, CAG ने पाया कि राफेल विमान के विक्रेताओं ने ऑफसेट अनुबंध के तहत 'प्रौद्योगिकी हस्तांतरण' की पुष्टि नहीं की है. ऑफसेट दायित्वों को 23-9-2019 को शुरू होना चाहिए था और पहली वार्षिक प्रतिबद्धता 23 सितंबर 2020 तक पूरी होनी चाहिए थी, जो कि कल थी. क्या सरकार बताएगी कि वह दायित्व पूरा हुआ कि नहीं? इसके साथ ही चिदंबरम ने ट्वीट के अंत में कहा है कि क्या CAG ने मोदी सरकार के लिए 'जटिल समस्याओं का पिटारा' खोलने वाली रिपोर्ट दी है? कुछ यही अंदाज रणदीप सिंह सुरजेवाला की ट्वीट का है. उन्होंने भी कैग रिपोर्ट का हवाला देते हुए मोदी सरकार को घेरा है.
Chronology of biggest Defense deal continues to unfold.
— Randeep Singh Surjewala (@rssurjewala) September 24, 2020
The new CAG report admits that ‘technology transfer’ shelved in #Rafale offsets.
1st, ‘Make in India’ became ‘Make in France’.
Now, DRDO dumped for tech transfer.
Modi ji will say-सब चंगा सी !https://t.co/5vUkRsuIa7
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DRDO को दसॉल्ट ने नहीं की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
गौरतलब है कि 2019 लोकसभा चुनाव में राफेल विवाद का मुद्दा भी छाया रहा. तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 'चौकीदार चोर है' का नारा बुलंद कर राफेल का महंगा सौदा करने समेत ऑफसेट में धांधली का आरोप लगाया था. संसद में बुधवार को पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत बड़े पैमाने पर विदेशों से हथियारों की खरीद करता है. रक्षा खरीद नीति के तहत 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान लागू किए गए हैं. इसके तहत विदेशी कंपनी को 30 फीसदी रकम भारत में निवेश करनी होती है. इसके साथ ही घरेलू स्तर पर तकनीक की मदद से संबंधित क्षेत्र में विकास करना होता है. राफेल के सौदे की ऑफसेट नीति के तहत दसॉल्ट एविएशन ने सौदे में ऑफसेट वादे पर डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव देने को कहा था.
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कावेरी इंजन के विकास में लगानी थी तकनीक
कैग रिपोर्ट के दसॉल्ट एविएशन ने विमानों की सौदे के वक्त 30 फीसदी ऑफसेट प्रावधान के बदले डीआरडीओ को उच्च तकनीक देने का प्रस्ताव किया था. डीआरडीओ को यह तकनीक अपने हल्के लड़ाकू विमान के इंजन कावेरी के विकास के लिए चाहिए थी, लेकिन दसॉल्ट एविएशन ने आज तक अपना वादा पूरा नहीं किया. कैग ने कहा कि हथियार बेचने वाली कंपनियां कांट्रेक्ट पाने के लिए तो ऑफसेट का वादा करती हैं लेकिन बाद में उसे पूरा नहीं करती हैं. इसके चलते ऑफसेट नीति बेमानी हो रही है. इसी सिलिसले में राफेल विमानों की खरीद का भी जिक्र किया गया है, जिसमें 2016 में राफेल के ऑफसेट प्रस्ताव का हवाला दिया गया है.
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एक-तिहाई ऑफसेट कांट्रेक्ट ही हुए पूरे
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2005-2018 के बीच रक्षा सौदों में कुल 46 ऑफसेट कांट्रेक्ट किए गए जिनका कुल मूल्य 66427 करोड़ रुपये था, लेकिन दिसंबर 2018 तक इनमें से 19223 करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट ही पूरे हुए. हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इसमें भी 11396 करोड़ के क्लेम ही उपयुक्त पाए, बाकी खारिज कर दिए गए. रिपोर्ट में कहा गया है कि 55 हजार करोड़ के ऑफसेट कांट्रेक्ट अभी नहीं हुए हैं. तय नियमों के तहत इन्हें 2024 तक पूरा किया जाना है.
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ऑफसेट प्रावधान ऐसे होते हैं पूरे
ऑफसेट प्रावधानों को कई तरीके से पूरा किया जा सकता है. जैसे देश में रक्षा क्षेत्र में निवेश के जरिये, निशुल्क तकनीक देकर तथा भारतीय कंपनियों से उत्पाद बनाकर. इस क्रम में सीएजी ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया है कि यह नीति अपने लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पा रही है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि खरीद नीति में सालाना आधार पर ऑफसेट कांट्रेक्ट को पूरा करने का प्रावधान नहीं किया गया है. पुराने मामलों के विश्लेषण से पता चलता है कि आखिर के दो सालों में ही ज्यादातर कांट्रेक्ट पूरे किए जाते हैं.