बिहार के वैशाली जिले के रहने वाले समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh prasad singh)के निधन की खबर के बाद राज्य के सियासी हलकों में शोक की लहर उमड़ गई है. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं ने सिंह के निधन पर शोक प्रकट किया है.
रघुवंश प्रसाद उन गिने-चुने नेताओं में शुमार थे जिंदगी निजी जिंदगी साफ, बेदाग और बेबाक थे. उन्होंने ग्रामीण विकास को नया आयाम दिया. रघुवंश प्रसाद सिंह ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की शुरुआत की. जिसने गांव के ढांचे को बदल दिया.
कैसे शुरू हुआ मनरेगा
2004 में जब कांग्रेस की वापसी हुई थी तब इस सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय की कमान रघुवंश प्रसाद सिंह संभाल रहे थे. इस सरकार में सोनिया गांधी की अध्यक्षता में राष्ट्रीय सलाहकार समिति बनी थी. जिसमें सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया.
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इस समिति ने अपनी पहली बैठक में रोजगार गारंटी कानून बनाने का प्रस्ताव पास किया. कानून बनाने की जिम्मेदारी श्रम मंत्रालय को दी गई. श्रम मंत्रालय ने छह महीने में हाथ खड़े कर दिए. इसके बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय को कानून बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गईं.
कैबिनेट के कई लोगों को इसके लिए मनाया था
इस योजना को लागू करने में रघुवंश प्रसाद सिंह ने अहम भूमिका निभाई. बताया जा रहा है कि इस कानून को लेकर उस दौरान कैबिनेट में कई लोग सवाल खड़ा कर रहे थे. रघुवंश प्रसाद सिंह ने इस कानून को लेकर कैबिनेट में लंबी बातचीत की और सबको आखिरकार मना लिया.
रघुवंश प्रसाद ने इसपर जी तोड़ मेहनत की और वो रंग लाया. 2 फरवरी, 2006 को देश के 200 पिछड़े जिलों में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना लागू की गई.
मनरेगा ने निभाई थी यूपीए 2 की जीत में अहम भूमिका
इसके बाद 2008 तक यह भारत के सभी जिलों में लागू हो गई. 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही. इसके पीछे राजनीतिक विश्लेषक ने मनरेगा की बड़ी भूमिका होने की बात कही.
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अपनी गंवई अंदाज से राजनीति में पहचान बनाने वाले रघुवंश अपनी अंतिम सांस लेने के पहले राष्ट्रीय जनता दल (राजद) छोड़ दिया था, लेकिन राजनीति में उनकी पहचान 'आजादशत्रु' की थी. उनकी प्रशंसा सभी दलों के नेता करते हैं.
Source : News Nation Bureau