भारतीय राजनीति में पर्दे के पीछे भी बहुत कुछ आकार लेता है. अक्सर जिसकी भनक राजनीतिक गलियारों तक को नहीं लगती. सूत्रों के मुताबिक गुरुवार को सूरत की जिला अदालत (Surat District Court) द्वारा 2019 के आपराधिक मानहानि मामले (Modi Surname Case) में कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को दोषी ठहराए जाने के कुछ घंटों बाद लोकसभा (Lok Sabha) से उनकी अयोग्यता से संबंधित मुद्दे पर शीर्ष अधिकारियों के बीच प्रारंभिक चर्चा हुई. शुक्रवार को वायनाड से कांग्रेस के पूर्व सांसद राहुल गांधी की अयोग्यता (Rahul Gandhi Disqualification) के लिए महासचिव उत्पल कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना से पहले निचले सदन को दो बार स्थगित किया गया था.
वित्त विधेयक पारित होने के बाद जारी की गई अधिसूचना
एक सूत्र के मुताबिक संसद के निचले सदन यानी लोकसभा में विपक्षी दलों के विरोध और हंगामे से बचने के लिए वित्त विधेयक पारित होने के बाद ही राहुल गांधी की सांसदी रद्द होने अधिसूचना जारी की गई. पदाधिकारी ने नाम न छापने की मांग करते हुए कहा, 'वित्त विधेयक पारित होने और सदन स्थगित होने के बाद अधिसूचना जारी करना बेहतर था.' सचिवालय किसी सांसद की सदस्यता रद्द करने की औपचारिक कार्रवाई से पहले अदालत के फैसले की कॉपी की प्रतीक्षा कर रहा था, जो ऐसे मामले में एक अनिवार्य आवश्यकता है. अदालत के फैसले की कॉपी सचिवालय को शुक्रवार सुबह मिली थी.
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अयोग्यता की फाइल तैयार करने में लगा आधे घंटे से कम
एक बार अदालत का आदेश हाथ में आने के बाद अयोग्यता का नोटिफिकेशन जारी करना एक सरल प्रक्रिया थी. इसकी फाइल तैयार करने में 30 मिनट से भी कम समय लगता है. यदि यह दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का मामला होता, तो फिर अयोग्य ठहराने के लिए एक मैराथन प्रक्रिया अपनानी पड़ती. एक अन्य सूत्र के अनुसार लोकसभा में पहले पेश आए ऐसे ही दो मामलों के मद्देनजर राहुल गांधी की सांसदी को अयोग्य ठहराने का फैसला लेना आसान था. हालांकि संसद के इतिहास में ऐसे और भी कई मामले सामने आए हैं. संसद जैसी संवैधानिक संस्था मिसालों पर भी निर्भर करती है.
HIGHLIGHTS
- सूरत अदालत के फैसले की कॉपी सचिवालय को शुक्रवार सुबह मिली
- इसके बाद वित्त विधेयक पारित होने तक रोका गया था नोटिफिकेशन
- लोकसभा के पूर्व के उदाहरणों से राहुल पर फैसला लेना आसान बना