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'राहुल गांधीजी... सीमा पर निहत्थे नहीं होते जवान', जानें हिंसक संघर्ष के बाद भी क्यों नहीं करते फायरिंग

एस जयशंकर (S Jaishankar) ने गुरुवार शाम को ट्वीट कर राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए उन संधियों का जिक्र किया, जिसकी वजह से परमाणु क्षमता संपन्न दो राष्ट्र यानी भारत-चीन सीमा पर भी हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं.

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Nihar Saxena
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राहुल गांधी अपने बयानों से मोदी सरकार नहीं, खुद को करते हैं असहज.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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पूर्वी लद्दाख (Ladakh) की गलवान घाटी में भारत-चीन सीमा (Indo-China Border) पर हिंसक संघर्ष के बाद कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने मोदी सरकार को घेरते हुए पूछा था कि आखिर भारतीय सैनिकों को बगैर हथियार के सीमा पर भेजा ही क्यों गया? इसके जवाब में विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) ने गुरुवार शाम को ट्वीट कर राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए उन संधियों का जिक्र किया, जिसकी वजह से परमाणु क्षमता संपन्न दो राष्ट्र यानी भारत-चीन सीमा पर भी हथियारों का इस्तेमाल नहीं करते हैं. इसके पहले बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने भी राहुल गांधी को आईना दिखाया था.

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हिंसक संघर्ष में भी नहीं चली गोली
गौरतलब है कि लद्दाख और सिक्किम भारत-चीन सीमा पर तनाव के बीच सोमवार को दोनों पक्षों के जवान भिड़ गए. उस वक्त भारतीय जवान नियमित पेट्रोलिंग पर थे, जब उन्होंने पीएलए के सैनिकों को यथास्थिति बरकरार रखने को कहा और इसके फलस्वरूप आरोप-प्रत्यारोप के बीच लोहे की रॉड, पत्थर और अन्य देसी हथियारों से मारपीट शुरू हो गई. हालांकि दोनों ही पक्षों ने एक-दूसरे पर एक भी गोली नहीं चलाई. इस हिंसक संघर्ष में भारतीय सेना के 20 अधिकारी और जवान तो चीनी सेना के 37 अधिकारी और जवान हताहत हो गए. जाहिर है इसके बाद ही राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरा.

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45 साल बाद गई जानें
भारत-चीन सीमा पर करीब 45 साल बाद किसी सैनिक की जान गई है. 1975 में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर आखिरी बार चीन के हमले में भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. तब अरुणाचल प्रदेश में चीन ने घात लगाकर हमला किया था जिसमें चार सैनिक शहीद हुए थे. भारत ने चीन पर सीमा पार कर हमले का आरोप लगाया था मगर चीन हमेशा की तरह मक्कारी से मुकर गया. तबसे लेकर सोमवार तक, विवादित सीमा पर झड़प तो कई बार हुई लेकिन किसी की जान नहीं गई थी. हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी आम है और इसमें दोनों तरफ के जवान मारे जाते हैं, लेकिन चीन के साथ करीब 3500 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बड़े से बड़े तनाव के बावजूद बात हाथापाई तक ही सीमित रहती है.

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ये है हथियार नहीं चलाने की मूल वजह
दरअसल, भारत और चीन ने तय किया है कि दोनों के बीच चाहे कितने गहरे मतभेद हों, सीमा पर इसका असर नहीं पड़ना चाहिए. दोनों देशों ने अब तक इसका पूरी तरह पालन किया था. दोनों देशों ने यह तय किया है कि सीमा पर अग्रिम चौकियों पर जो भी सैनिक तैनात होंगे, उनके पास हथियार नहीं होंगे और अगर रैंक के मुताबिक अफसरों के पास बंदूक होगी, तो उसका मुंह जमीन की तरफ होगा, यही वजह है कि एलएसी पर दोनों तरफ के सैनिक निहत्थे एक-दूसरे को अपने इलाके से खदेड़ते हैं और हथियारों का इस्तेमाल नहीं होता है. एलएसी पर तैनात दोनों तरफ के सैनिकों को इसकी खास ट्रेनिंग दी जाती है कि कुछ भी हो जाए हथियार का इस्तेमाल नहीं करना है.

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भारत-चीन के बीच समझौते
दोनों देशों ने लगातार बातचीत से वास्तदविक नियंत्रण रेखा पर कभी स्थिति बेकाबू नहीं होने दी. 1993 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए मेंटेनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर दस्तख़त हुए. उसके बाद 1996 में दोनों देशों के बीच विश्वास बढ़ाने के उपायों पर समझौता हुआ. 2003 में वाजपेयी सरकार और 2005 में मनमोहन सिंह सरकार के दौर में भी चीन से समझौते हुए. इसके बाद 2013 में बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ. डोकलाम में कई दिनों तक दोनों देशों की सेनाओं के बीच तनातनी रही लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चीन यात्रा से इस विवाद का अंत हो गया.

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ताजा विवाद
सूत्रों का कहना है कि भारत और चीन के बीच यह समझ बनी थी कि जब हमारे आर्थिक और नागरिक संबंध अच्छे और परिवक्व हो जाएंगे, तब जाकर सीमाओं के मसले सुलझाया जाएगा, लेकिन मई के शुरुआती दिनों में चीनी सैनिकों ने एलएसी पर आक्रामक रुख अपनाना शुरू किया था. पूर्वी लद्दाख में चार जगहों पर पीपुल्‍स लिबरेशन आर्मी ने घुसपैठ की. बड़ी संख्‍या में चीनी, सैनिक आर्टिलरी और बख्‍तरबंद गाड़ियों के साथ मौजूद हैं. गलवान घाटी और पैंगोंग झील, दो मुख्‍य बिंदू हैं जहां दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हैं.

Source : News Nation Bureau

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