भारत के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा को के खिलाफ लाए गए कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के महाभियोग को राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया है।
राज्यसभा के सभापति ने कहा है कि चर्चा और लोगों की राय जानने के बाद मुख्य न्यायाधीश को हटाने के लिये दिया गया प्रस्ताव जजों को हटाने के लिये बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है।
सभापति ने कहा कि इस नोटिस पर 64 सदस्यों के हस्ताक्षर थे। इसके लिए जज इन्क्वायरी ऐक्ट के सेक्शन 3(1) के तहत विचार करने की जरूरत थी।
उन्होंने कहा कि चूंकि यह प्रस्ताव सीधे चीफ जस्टिस के खिलाफ था तो इस मामले में उनसे कोई विधिक राय नहीं ली जा सकती थी। मैंने इसके लिए कानून के विशेषज्ञ, संविधान विशेषज्ञों और राज्य सभा और लोकसभा के पूर्व महासचिवों से चर्चा की। पूर्व लॉ अधिकारियों, लॉ कमिशन के सदस्यों और मशहूर न्यायविदों से भी चर्चा की।
उन्होंने कहा, 'मैं पूर्व अटॉर्नी जनरल, संविधान विशेषज्ञों और अखबारों के संपादकों के बयानों और राय को देखा जिसमें सबकी राय है कि जजों को हटाने के लिये मेरे सामने आया प्रस्ताव बिलकुल भी उपयुक्त नहीं है।'
कानून विशेषज्ञों और जानकारों के साथ व्यापक विचार विमर्श के बाद सभापति ने ये फैसला लिया है। लेकिन महाभियोग के प्रस्ताव को खारिज करने के पीछे क्या तकनीकी कीरण रहे हैं और उसके क्या तकनीकी आधार थे ये जानने की कोशिश करते हैं।
राज्यसभा के सभापति ने कहा है, 'माननीय सदस्यों जिन्होंने ये याचिका दी है उन्हें अपने ही केस पर यकीन नहीं है। यचिका के पहले पेज में ही कुछ शब्द इस्तेमाल किये गए हैं जैसे प्रसाद एजुकेशन ट्र्स्ट से संबंधित मामले में प्रथम द्ष्ट्या लग रहा है कि वो 'संभवतः' गैरकानूनी भुगतान के षड्यंत्र में शामिल रहे होंगे। इसमें आगे मुख्य न्यायाधीश को लेकर कहा गया है कि वो भी संभवतः जांच के दायरे में आते हैं। इसमें फिर आगे कहा गया है कि 'ऐसा लगता है कि मुख्य न्यायाधीश ने प्रशासनिक आदेश को पिछली तारीख में दर्ज किया है।'
उन्होंने कहा, 'इस तरह के उदाहरण मैं इसलिये दे रहा हूं क्योंकि माननीय सांसदों ने खुद संदेह, परिस्थिति और अंदेशा की तरफ इशारा किया है। इन सबसे धारा 124 (4) के तहत दुराचार को प्रमाणित नहीं करता है। संदिग्ध साख वालों के बीच हुई बातचीत, जिस पर विश्वास कर प्रस्ताव टिका है, वो भारत के मुख्य न्यायाधीश के पद पर बैठे व्यक्ति को हटाने के लिये ठोस सबूत नहीं बनता है।'
और पढ़ें: वित्तमंत्री जेटली ने कांग्रेस पर लगाया आरोप, कहा- महाभियोग को राजनीतिक हथियार बनाकर डराने की कोशिश
वेंकैया नायडू ने कामिनी जायसवाल बनाम भारत संघ 2017 का उदाहरण देते हुए कहा है, 'प्रस्ताव में लगाए गए पांचों आरोपों को पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि ये न तो तर्कसंगत हैं और न ही स्वीकार किये जाने योग्य है। इस मामले में लगाए गए आरोप संविधान में न्यायपालिका को दी गई स्वतंत्रता को कमज़ोर करते हैं। विचार करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इनमें किसी भी एक को आधार बनाकर इस प्रस्ताव की स्वीकार करना न तो वैध है और न ही सही होगा।'
उन्होंने कहा, 'प्रस्ताव को पढ़ने और संविधान के जानकारों से विस्तृत सलाह के बाद मैं संतुष्ट हूं कि सीजेआई के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव न तो ज़रूरी है और न ही सही।'
उन्होंने कहा, 'महाभियोग प्रस्ताव में लागाए गए सभी 5 आरोपों और कागाजातों पर विचार किया है। प्रस्ताव में दिये गए सभी तथ्य किसी भी विवेकशील व्यक्ति को ये फैसला लेने की इजाजत नहीं देते कि मुख्य न्यायाधीश को दुराचार का दोषी ठहराया जाए।'
राज्यसभा के सभापति ने कहा कि इस तरह के प्रस्ताव के लिए एक पूरा संसदीय परंपरा है। राज्य सभा के सदस्यों के हैंडबुक के पैराग्राफ 2.2 में इसका उल्लेख है। यह पैराग्राफ इस तरह के नोटिस को पब्लिक करने से रोकता है। इस मामले में मुझे यह नोटिस सौंपते ही 20 अप्रैल को सदस्यों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला ली और कॉन्टेंट को शेयर किया। यह संसद के परंपरा के खिलाफ था। इस कारण मुझे तुरंत फैसला लेना पड़ा ताकि इस मामले में अटकलों पर रोक लगे।
उन्होने कहा कि सभी तथ्यों पर विचार के बाद मैं इस नोटिस को मंजूर नहीं कर रहा हूं।
और पढ़ें: CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस का महाभियोग प्रस्ताव खारिज
Source : News Nation Bureau