प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सकारात्मक पहल के बावजूद किसान आंदोलन (Farmers Agitation) बदस्तूर जारी है. हालांकि कृषि कानूनों की कड़ी में चल रहे धरना-प्रदर्शन में अगला हफ्ता किसान आंदोलन के लिहाज से निर्णायक हो सकता है. सूत्रों की मानें तो मोदी सरकार (Modi Government) बातचीत का नया फॉर्मुला किसानों को दे सकती है और इसका दायरा भी बढ़ा सकती है. पीएम मोदी की पहल और कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर के राज्यसभा में भाषण के बाद माना जा रहा है कि सरकार किसान संगठनों को 'खुलकर' बातचीत करने का नया प्रस्ताव जल्द देगी. इसमें सरकार किसानों से ही प्रस्ताव मांगेगी और उस पर विस्तार से उनके सामने बात रखेगी. अगले हफ्ते के अंत तक बातचीत का सिलसिला फिर शुरू हो सकता है. हालांकि उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों में राष्ट्रपति अभिभाषण के धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस के बाद सरकार का पक्ष रखेंगे. इसमें वह कानून और टकराव के बीच के रास्ता की बात करेंगे. गौरतलब है कि पिछले दिनों पीएम मोदी ने यह कहकर किसान और सरकार के बीच बातचीत का चैनल खोल दिया था कि कृषि मंत्री किसानों से महज एक फोन की दूरी पर हैं और कानून को डेढ़ साल रद्द करने का सरकार का प्रस्ताव अभी भी कायम है. यह अलग बात है कि किसान नेता राकेश टिकैत दो टूक कह रहे हैं वह दबाव में किसी भी बातचीत को स्वीकार नहीं करेंगे.
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संवादहीनता से बढ़ेगा टकराव
तारीख के हिसाब से बात करें तो 22 जनवरी को वार्ता विफल होने के बाद से लेकर अब तक सरकार और किसानों के बीच कोई बात नहीं हुई है. सरकार ने 2 जनवरी को यह भी कह दिया कि कानून को डेढ़ साल तक स्थगित करने के प्रस्ताव के बाद अब इससे आगे कुछ नहीं देंगे तो किसान संगठनों ने भी दो टूक कहा था कि कानून वापसी से कम की शर्त मंजूर नहीं. इसके बाद से ही बातचीत किस तरह शुरू हो, इसे लेकर उलझन की स्थिति बनी हुई है. सरकार को पता है कि अब बातचीत का रास्ता अधिक दिनों तक बंद नहीं रखा जा सकता है. संवादहीनता की स्थिति में टकराव बढ़ने का डर है. वहीं, इसके देश के दूसरे हिस्सों तक भी फैलने की आशंका है. विपक्ष अब खुलकर किसान आंदोलन को समर्थन दे रहा है. इस कारण पिछले कुछ दिनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्य तक आंदोलन बढ़ा. वहीं वैश्विक स्तर पर भी मामला उठने से चिंता बढ़ी. हालांकि अमेरिकी प्रशासन ने किसान कानून को समर्थन दिया लेकिन आंदोलन को समाप्त करने के लिए बातचीत की वकालत की.
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किसान नेताओं के बीच परस्पर समन्वय की दिक्कत
दूसरी ओर किसान संगठनों के बीच भी बातचीत शुरू करने का दबाव है. हालांकि, 26 जनवरी को हुई हिंसक आंदोलन के बाद एक बार आंदोलन जरूर कमजोर होता दिखा लेकिन बाद में फिर संभला. सूत्रों के अनुसार, भले महीनों तक बैठने का दावा किसान नेता कर रहे हैं लेकिन लंबा खींचने तक इनके बीच समन्वय की समस्या अभी से आने लगी है. इन्हें लगता है कि एक बार फिर बातचीत शुरू होने से उम्मीद बढ़ेगी और वे एकजुट होकर आंदोलन में जुटे रहेंगे. इस कड़ी में किसान नेता राकेश टिकैत का कहना है कि किसान बातचीत करने को तैयार हैं, लेकिन इस प्रेशर में बातचीत नहीं होगी. सरकार पहले किसानों पर से दबाव हटाए. यह किसान नेताओं की शर्त है. संयुक्त किसान मोर्चा इस संबंध में रणनीति तय कर चुका है. उन्होंने फिर दोहराया कि जब तक सरकार उनकी मांगें नहीं मान लेती, वे किसानों के साथ डटे हुए हैं. आंदोलन 2 अक्टूबर तक पहला चरण पूरा कर लेगा. दूसरे चरण की रूपरेखा संयुक्त किसान मोर्चा तय कर रहा है. उन्होंने कहा कि मंच और पंच जो फैसला करेंगे, आंदोलन वैसा ही जारी रहेगा.
HIGHLIGHTS
- अगले हफ्ते के अंत तक किसानों को नया प्रस्ताव देगी सरकार
- इसमें किसानों से ही बातचीत का प्रस्ताव मांगेगी मोदी सरकार
- राकेश टिकैत दबाव की स्थिति में बातचीत से कर रहे इंकार