भारत में रक्षाबंधन का इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है, इतना ही नहीं देश की आजादी के समर में भी इस पर्व ने अहम भूमिका निभाई है। 20वीं सदी के शुरुआती दौर में देश में कई जगह अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बज चुका था, ऐसे में ब्रिटिश शासकों की एक ही सोच थी कि कैसे भारतीयों को तोड़ा जाए और आंदोलन को कमजोर किया जाए। इसी उद्देश्य के साथ अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो नीति पर काम करना शुरु किया। इसी नीति के तहत अंग्रेजों ने बंगाल के मुस्लिम बहुल क्षेत्र को असम के साथ मिलाकर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा कर दी।
देश की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला के ‘वायसराय भवन’ से लार्ड कर्जन ने यह आदेश जारी किया कि 16 अक्तूबर, 1905 से यह नया राज्य अस्तित्व में आ जायेगा।
वायसराय का यह आदेश सुनते ही पूरे बंगाल में विरोध की लहर दौड़ गई। इसके विरोध में न केवल राजनेता अपितु बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष सब सड़कों पर उतर आये। उन दिनों बंगाल क्रान्तिकारियों का गढ़ था। क्रान्तिकारियों ने इस विभाजन को किसी कीमत पर लागू न होने देने की चेतावनी दी।
उस समय के अखबारों ने भी इस आदेश को लेकर कई विशेष लेख छापे और लोगों से विदेशी वस्त्रों और वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की। जनसभाओं में एक वर्ष तक सभी सार्वजनिक पर्वों पर होने वाले उत्सव स्थगित कर राष्ट्रीय शोक मनाने की अपील की जाने लगीं।
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देश भर में इन अपीलों का असर कुछ इस कदर हुआ कि पंडितों ने विदेशी वस्त्र पहनने वाले वर-वधुओं के विवाह कराने से हाथ पीछे खींच लिया। नाइयों ने विदेशी वस्तुओं के प्रेमियों के बाल काटने और धोबियों ने उनके कपड़े धोने से मना कर दिया। इससे विदेशी सामान की बिक्री बहुत घट गयी।
‘मारवाड़ी चैम्बर ऑफ कॉमर्स’ ने ‘मेनचेस्टर चैम्बर ऑफ कॉमर्स’ को तार भेजा कि शासन पर दबाव डालकर इस निर्णय को वापस कराइये, अन्यथा यहां आपका माल बेचना असंभव हो जाएगा। 16 अक्तूबर, 1905 को पूरे बंगाल में शोक पर्व के रूप में मनाया गया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर तथा अन्य प्रबुद्ध लोगों ने आग्रह किया कि इस दिन सब नागरिक गंगा या निकट की किसी भी नदी में स्नान कर एक दूसरे के हाथ में राखी बांधें। इसके साथ ही लोग संकल्प लें कि जब तक यह काला आदेश वापस नहीं लिया जाता, वो चैन से नहीं बैठेंगे।
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उनकी अपील को देखते हुए 16 अक्तूबर को बंगाल के सभी लोग सुबह जल्दी ही सड़कों पर आ गये। स्नान कर सबने एक दूसरे को पीले सूत की राखी बांधी और आन्दोलन का मन्त्र गीत वन्दे मातरम् गाया। 6 साल तक आन्दोलन चलता रहा। हजारों लोग जेल गये पर कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। धीरे-धीरे यह आंदोलन देशव्यापी हो गया।
देश में लगातार तेजी से बढ़ रहे इस आंदोलन को देखते हुए लंदन में बैठे ब्रिटिश शासक घबरा गए। ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम ने 11 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली में दरबार कर यह आदेश वापस ले लिया।
इतना ही नहीं उन्होंने वायसराय लार्ड कर्जन को वापस बुलाकर उसके बदले लार्ड हार्डिंग को भारत भेज दिया। इस तरह से राखी के धागों से उत्पन्न इस 'बंग-भंग आंदोलन' ने बंगाल को विभाजित होने से रोक दिया।
Source : Vineet Kumar