रामजस कॉलेज में हुई हिंसा के दौरान छात्राओं के साथ पुलिस की कथित ज्यादती और उनकी पिटाई का मामला लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के कानून के दो छात्रों ने मंगलवार को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने कोर्ट से घटना की जांच के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित करने का निर्देश देने की मांग की।
कानून के अंतिम वर्ष के छात्र तरुण नारंग और दीपक जोशी ने कोर्ट से यह आग्रह भी किया कि वह कानून प्रवर्तन एजेंसियों को विश्वविद्यालय परिसरों में विद्यार्थियों और मीडिया के साथ निपटने के तरीके पर दिशानिर्देश भी जारी करे।
याचिका में कहा गया है, 'पुलिस अधिकारी छात्राओं को बहुत ही आपत्तिजनक तरीके से पकड़े हुए थे.. उनके निजी अंगों को स्पर्श कर रहे थे। दिल्ली पुलिस स्थिति से निपटने और शांति कायम करने में विफल रही। स्थिति तब और बिगड़ गई जब एक समूह ने परिसर में एक विरोध मार्च निकालना चाहा, लेकिन कुछ विद्यार्थियों ने इसे बाधित कर दिया।'
याचिका में कहा गया है कि विरोधरत विद्यार्थी समूहों के बीच तनाव पुलिस की उपस्थिति के बावजूद बढ़ गया, जिसके बाद स्थिति हिंसक हो गई।
याचिका में कहा गया है, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली पुलिस ने छात्राओं के साथ दुर्व्यवहार किया, और उनके ऊपर अत्यधिक बल प्रयोग किया, उनकी पिटाई की, उन्हें थप्पड़ मारे और उनका शील भंग किया।'
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दोनों याचिकाकर्ताओं ने पुलिस पर आरोप लगाया कि उसने विरोध मार्च को कवर करने पहुंचे मीडियाकर्मियों को रोका, उन्हें धमकी दी और उनके साथ भी मारपीट की। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पुलिस ने मीडियाकर्मियों के कैमरे और अन्य उपकरण तोड़ डाले।
रामजस कॉलेज में 21 फरवरी को एक संगोष्ठी आयोजित की गई थी, जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र उमर खालिद को आमंत्रित किया गया था, जिसका अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ताओं ने संगोष्ठी नहीं होने दी। उमर खालिद पर पिछले वर्ष देशद्रोह का आरोप लगा था, लेकिन इस आरोप से मुक्त कर उन्हें जमानत दे दी गई थी।
घटना के अगले दिन 22 फरवरी को एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने रामजस कॉलेज के बाहर एक विरोध मार्च निकाला और इस दौरान विरोधी गुट के विद्यार्थियों, शिक्षकों और पत्रकारों पर कथित तौर पर हमला किया।
Source : News Nation Bureau