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रवींद्रनाथ टैगोर जयंती: जानें महान साहित्यकार के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को

रविंद्रनाथ को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वह एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता हैं। इसके साथ ही वो एकमात्र ऐसे कवि है जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बना।

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Vineeta Mandal
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रवींद्रनाथ टैगोर जयंती: जानें महान साहित्यकार के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को

रवींद्रनाथ टैगोर जयंती (फाइल फोटो)

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महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर की आज जयंती है। उन्होंने बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नई जान डाली थी। वह कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं, यात्रावृन्त, नाटक और गाने लिखे चुके हैं। वह एक साहित्यकार के साथ ही विश्व प्रसिद्ध दार्शनिक भी थे।

रविंद्रनाथ को गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। वह एशिया के पहले नोबल पुरस्कार विजेता हैं। इसके साथ ही वह एकमात्र ऐसे कवि हैं, जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बना। भारत का राष्ट्रगान 'जन गण मन' और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार' गुरुदेव ने ही लिखा है।

रवीन्द्रनाथ का जीवन परिचय

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म देवेन्द्रनाथ ठाकुर और शारदा देवी के सन्तान के रूप में 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासांको ठाकुरबाड़ी में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल में हुई।

उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया। फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया, लेकिन 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश वापस लौट आए। सन 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।

टैगोर की माता का निधन उनके बचपन में हो गया था और उनके पिता व्यापक रूप से यात्रा करने वाले व्यक्ति थे।

11 वर्ष की उम्र में उनके उपनयन (आने वाला आजीवन) संस्कार के बाद, टैगोर और उनके पिता कई महीनों के लिए भारत का दौरा करने के लिए फरवरी 1873 में कलकत्ता छोड़कर अपने पिता के शांतिनिकेतन सम्पत्ति और अमृतसर सेडेलाहौसी के हिमालयी पर्वतीय स्थल तक निकल गए थे।

वहां टैगोर ने जीवनी, इतिहास, खगोल विज्ञान, आधुनिक विज्ञान और संस्कृत का अध्ययन किया था और कालिदास की शास्त्रीय कविताओं के बारे में भी पढ़ाई की थी।

1873 में अमृतसर में अपने एक महीने के प्रवास के दौरान, वह सुप्रभात गुरबानी और नानक बनी से बहुत प्रभावित हुए थे, जिन्हें स्वर्ण मंदिर में गाया जाता था, जिसके लिए दोनों पिता और पुत्र नियमित रूप से आगंतुक थे। उन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक मेरी यादों में उल्लेख किया जो 1912 में प्रकाशित हुई थी।

गुरुदेव का साहित्य और लेखनी में रूचि

साहित्य की शायद ही ऐसी कोई शाखा हो, जिनमें उनकी रचना न हो, कविता, गान, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबन्ध, शिल्पकला सभी विधाओं में उन्होंने रचना की।

उनकी प्रकाशित कृतियों में - गीतांजली, गीताली, गीतिमाल्य, कथा ओ कहानी, शिशु, शिशु भोलानाथ, कणिका, क्षणिका, खेया प्रमुख।

उन्होंने कुछ पुस्तकों का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया। अंग्रेज़ी अनुवाद के बाद उनकी प्रतिभा पूरे विश्व में फैली।

बचपन से ही उनकी कविता, छन्द और भाषा में अद्भुत प्रतिभा का आभास लोगों को मिलने लगा था। उन्होंने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी और 1877 में केवल सोलह साल की उम्र में उनकी लघुकथा प्रकाशित हुई थी।

गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिनी, शिशु भोलानाथ, महुआ, वनवाणी, परिशेष, पुनश्च, वीथिका शेषलेखा, चोखेरबाली, कणिका, नैवेद्य मायेर खेला और क्षणिका शामिल हैं।

पिता के ब्रह्म-समाजी के होने के कारण वे भी ब्रह्म-समाजी थे। पर अपनी रचनाओं और कर्म के द्वारा उन्होंने सनातन धर्म को भी आगे बढ़ाया।

रवींद्रनाथ टैगोर ज्यादातर अपनी पद्य कविताओं के लिए जाने जाते है, टैगोर ने अपने जीवनकाल में कई उपन्यास, निबंध, लघु कथाएं, यात्रावृन्त, नाटक और हजारों गाने भी लिखे हैं।

टैगोर की गद्य में लिखी उनकी छोटी कहानियों को शायद सबसे अधिक लोकप्रिय माना जाता है; इस प्रकार इन्हें वास्तव में बंगाली भाषा के संस्करण की उत्पत्ति का श्रेय दिया जाता है। उनके काम अक्सर उनके लयबद्ध, आशावादी, और गीतात्मक प्रकृति के लिए काफी उल्लेखनीय हैं।

उन्होंने इतिहास, भाषाविज्ञान और आध्यात्मिकता से जुड़ी कई किताबें लिखी थी। टैगोर के यात्रावृन्त, निबंध, और व्याख्यान कई खंडों में संकलित किए गए थे, जिनमें यूरोप के जटरिर पत्रों (यूरोप से पत्र) और मनुशर धरमो (द रिलिजन ऑफ मैन) शामिल थे।

प्रकृति और शांतिनिकेतन

टैगोर को बचपन से ही प्रकृति का साथ बहुत पंसद था इसलिए उन्होंने अपने इस प्रेम की वजह से 1901 में सियालदह छोड़कर आश्रम की स्थापना करने के लिए शांतिनिकेतन आ गए। वो हमेशा सोचा करते थे कि प्रकृति के सानिध्य में ही विद्यार्थियों को अध्ययन करना चाहिए।

प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ों, बगीचों और एक पुस्तकालय के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की। प्रकृति के सान्निध्य में पेड़ों, बगीचों और एक पुस्तकालय के साथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना की।

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टैगोर और गांधी

रवींद्रनाथ टैगोर और महात्मा गांधी के बीच राष्ट्रीयता और मानवता को लेकर हमेशा वैचारिक मतभेद रहा। जहां गान्धी पहले पायदान पर राष्ट्रवाद को रखते थे, वहीं टैगोर मानवता को राष्ट्रवाद से अधिक महत्व देते थे। लेकिन दोनों एक दूसरे का बहुत अधिक सम्मान करते थे। टैगोर ने गांधी जी को महात्मा का विशेषण दिया था।

एक समय था जब शांतिनिकेतन आर्थिक कमी से जूझ रहा था और गुरुदेव देश भर में नाटकों का मंचन करके धन संग्रह कर रहे थे। उस समय गांधी जी ने टैगोर को 60 हजार रुपये के अनुदान का चेक दिया था।

रवींद्र संगीत

टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की। रवींद्र संगीत बांग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है। टैगोर के संगीत को उनके साहित्य से अलग नहीं किया जा सकता। उनकी अधिकतर रचनाएँ तो अब उनके गीतों में शामिल हो चुकी हैं।

हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ठुमरी शैली से प्रभावित ये गीत मानवीय भावनाओं के अलग-अलग रंग प्रस्तुत करते हैं।

7 अगस्त 1941 रवींद्रनाथ टैगोर ने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।

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Source : News Nation Bureau

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