साहित्य के कैनवास पर भूख से विवश होरी और बुज़ुर्गों के लिए फ़िक्रमंद हामिद की तस्वीर बनाते प्रेमचंद

Video: प्रेमचंद अपनी क़लम हमेशा शोषित वर्गों के उत्थान और तत्कालीन समाज की हकीक़त में बदलाव के लिए उठाते थे।

author-image
sankalp thakur
एडिट
New Update
साहित्य के कैनवास पर भूख से विवश होरी और बुज़ुर्गों के लिए फ़िक्रमंद हामिद की तस्वीर बनाते प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद (फाइल फोटो)

Advertisment

प्रेमचंद एक ऐसे लेखक थे जिन्होंने कभी कल्पना और फंतासियों पर कलम नहीं चलाया। उनकी कल्पनाओं में चांद या मौसम नहीं रहा। प्रेमचंद हिन्दी साहित्य में वैसे लेखक रहे, जिन्होंने हमेशा ही समाज के स्याह पक्ष को सामने रखा। उन्होंने अपने कहानी, उपन्यास में जो कुछ भी लिखा वह तत्कालीन समाज की हकीक़त थी।

'गोदान' के होरी में किसान की दुर्दशा बयान की तो 'ठाकुर का कुंआ' में समाजिक हक से महरूम लोगों का दर्द। प्रेमचंद कलमकार नहीं अपने समय में कलम के मजदूर बनकर लिखते रहे। उनकी कृतियों में जाति भेद और उस पर आधारित शोषण तथा नारी की स्थिति का जैसा मार्मिक चित्रण किया गया, वह आज भी दुर्लभ है।

एक तरफ जहां प्रेमचंद भूख से विवश होकर आत्महत्या करते किसान की कहानी कहते थे तो दूसरी तरफ हामीद के लड़कपन में बुज़ुर्गों के लिए फ़िक्र दिखाकर लोगों का दिल छूने में सफल रहे।

आज प्रेमचंद का जन्मदिन है। उन्हें धनपत राय के नाम से भी जाना जाता था। उनका जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के नज़दीक लमही गांव में हुआ था। उन्होंने कई कहानियां और उन्यास लिखे। हम आज आपको हमारे एडिटर प्रभात शुंगलू की आवाज़ में प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' सुनाने जा रहे हैं।

'ईदगाह' वही कहानी है जिसमें हामिद को मेला घूमने के लिए उसकी दादी अमीना तीन पैसे देती है। मेले में किस्म-किस्म की मिठाईयां, झूले और तोहफ़े बिक रहे होते हैं लेकिन हामिद उन सभी को छोड़कर अपनी दादी के लिए चिमटा ख़रीदता है।

Source : News Nation Bureau

Premchand
Advertisment
Advertisment
Advertisment