भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर उर्जित पटेल (Urjit Patel) ने सोमवार को 'निजी कारणों' का हवाला देते हुए तत्काल प्रभाव से अपने पद से इस्तीफा दे दिया(urjit patel resigns), जिससे देश के राजनीतिक-आर्थिक परिदृश्य में एक बड़े संकट की आशंका पैदा हो गई है. पटेल (Urjit Patel) ने इस्तीफा ऐसे समय दिया है जब सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच अर्थव्यवस्था में नकदी (liquidity) और ऋण (credit) की कमी को लेकर खींचातान चल रही थी, जिसके परिप्रेक्ष्य में 19 नवंबर को आरबीआई (RBI) (RBI) बोर्ड की एक असाधारण बैठक भी हुई थी.
इस बारे में ज़्यादा जानकारी देते हुए उर्जित पटेल ने कहा, 'व्यक्तिगत कारणों की वजह से मैंने मौजूदा पद तत्काल प्रभाव से छोड़ने का फैसला किया है. वर्षों तक रिजर्व बैंक में विभिन्न जिम्मेदारियों के साथ मुझे रिजर्व बैंक में सेवा का मौका मिला, यह मेरे लिए सम्मान की बात है.'
इस मौक़े पर पटेल ने अपने सभी सहयोगियों का धन्यवाद करते हुए कहा, 'आरबीआई (RBI) स्टाफ, ऑफिसर्स और मैनेजमेंट के समर्थन और कड़ी मेहनत से बैंक ने हाल के वर्षों में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. मैं इस मौके पर अपने साथियों और आरबीआई (RBI) के डायरेक्टर्स के प्रति कृतज्ञता जाहिर करता हूं और उन्हें भविष्य की शुभकामनाएं देता हूं.'
Urjit R. Patel: On account of personal reasons, I have decided to step down from my current position (RBI Governor) effective immediately. It has been my privilege and honour to serve in the Reserve Bank of India in various capacities over the years (File pic) pic.twitter.com/PAxQIiQ3hV
— ANI (@ANI) December 10, 2018
पटेल (Urjit Patel) ने 4 सिंतबर 2016 को तीन वर्ष के कार्यकाल के लिए आरबीआई (RBI) (RBI) गवर्नर का पद संभाला था. इससे पहले रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन (raghuram rajan) के कार्यकाल में विस्तार नहीं हुआ था.
सरकार और केंद्रीय बैंक के बीच संबंध अक्टूबर में तब फिर से खराब हो गए थे, जब आरबीआई (RBI) के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने लोगों को संबोधित करते हुए रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि इस बाबत किसी भी प्रकार का समझौता अर्थव्यवस्था के लिए 'संभावित विनाश' का कारण बन सकता है.
सरकार ने वित्त मंत्रालय की ओर से इसका जवाब दिया और आरबीआई (RBI) अधिनियम की धारा 7 के तहत (जिसका इस्तेमाल पहले कभी नहीं हुआ था) केंद्रीय बैंक से विचार-विमर्श करने का प्रस्ताव रखा. यह धारा सरकार को आरबीआई (RBI) गवर्नर को दिशा-निर्देश देने का अधिकार देती है. इसके बाद गवर्नर ने बैंक बोर्ड की बैठक बुलाई थी.
सरकार का आरबीआई (RBI) के साथ चार मुद्दों पर मतभेद था. सरकार क्रेडिट फ्रीज के किसी भी खतरे को दूर करने के लिए नकदी समर्थन चाहती है. दूसरा ऋणदाताओं के लिए पूंजी जरूरतों में छूट, तीसरा गैर निष्पादित संपत्ति या खराब ऋण से जूझ रहे बैंकों के त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) नियमों में छूट और चौथा सूक्ष्म, छोटे व मझौले उद्योग को समर्थन है.
नकदी मामले में सरकार की मांग थी कि आरबीआई (RBI) अपने 'आर्थिक पूंजी ढांचे' में बदलाव कर अपने सरप्लस रिजर्व को सरकार को सुपुर्द करे. विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार ने भारी राजकोषीय घाटे और चुनावी वर्ष में अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए यह मांग रखी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आरबीआई (RBI) बोर्ड बैठक से पहले पटेल से मुलाकात की थी.
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रिजर्व के मुद्दे पर, आरबीआई (RBI) बोर्ड ने इसके आर्थिक पूंजीगत ढांचे की जांच करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने का फैसला किया, जो यह निर्णय करेगी कि आरबीआई (RBI) को कितना र्जिव रखना है और कितना सरकार को सुपुर्द करना है.
Source : News Nation Bureau