विदेश सचिव एस.जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि रोहिंग्या मुद्दे को सुलझाने के लिए कठोर निंदा के बदले व्यावहारिक तरीके अपनाने की जरूरत है।
कार्नेगी इंडिया थिंक टैंक की ओर से आयोजित कार्यक्रम 'बंगाल की खाड़ी को जोड़ते हुए : भारत, जापान और क्षेत्रीय सहयोग' में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, 'रोहिंग्या मुद्दा 'चिंता का विषय है' और भारत इस मुद्दे पर बांग्लादेश और म्यांमार के साथ बातचीत कर रहा है।'
उन्होंने कहा, 'हमारा उद्देश्य यह देखना है कि ये लोग यहां से वापस (म्यांमार) कैसे जाते हैं। यह आसान कार्य नहीं होने वाला है।'
उन्होंने यह बयान ऐसे समय दिया है जब हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में फैली हिंसा के बाद बांग्लादेश जाने वाले रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या 604,000 बताया था।
जयशंकर ने कहा कि इस तरह की स्थितियों को कठोर आलोचना के बदले व्यावहारिक उपायों और रचनात्मक बातचीत से सुलझाना चाहिए और इसे स्थानीय स्तर पर संवेदनशील तरीके से सुलझाने की और ज्यादा जरूरत है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सितंबर माह की शुरुआत में म्यांमार दौरे के बाद, भारत ने रखाइन प्रांत में सेना की कार्रवाई और शरणार्थी स्थिति पर बोलने से परहेज किया था और रोहिंग्या उग्रवादियों द्वारा म्यांमार सुरक्षाबलों पर हमले की निंदा की थी।
इसके बाद नौ सितंबर को, भारत ने बांग्लादेश उच्चायुक्त सैयद मुआज्जिम अली द्वारा इस मुद्दे पर बातचीत के लिए जयशंकर को बुलाने पर अपनी स्थिति बदली थी। नई दिल्ली ने रोहिंग्या मुद्दे पर 'गहरी चिंता' जताई थी और म्यांमार से वक्तव्य जारी कर रखाइन प्रांत में स्थिति 'परिपक्वता और संयम' के साथ संभालने के लिए कहा था।
रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार अपना नागरिक नहीं मानता और बांग्लादेश में उसे शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है।
म्यांमार की स्टेट काउंसलर और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता आंग सान सू को रखाइन प्रांत में इस स्थिति को संभालने के तरीको की वजह से वैश्विक आलोचना झेलनी पड़ी थी।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने रविवार को बांग्लादेश की यात्रा के दौरान रखाइन प्रांत में हिंसा पर 'गहरी चिंता' जताई थी।
भारत ने सहायता सामग्री भेज कर इस संकट से निपटने के लिए बांग्लादेश की सहायता करने की कोशिश की है। भारत भी यहां रह रहे 40,000 रोहिंग्या को वापस भेजना चाहता है।
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Source : IANS