आरटीआई-डे की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को जारी हुई एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2005 में एक्ट के लागू होने के बाद से अब तक 3.02 करोड़ आवेदन राज्य और केंद्र सरकारों को मिले. समय से सूचना न देने वाले 15 हजार अफसरों पर 25-25 हजार रुपये जुर्माना लगाने की कार्रवाई हुई. पिछले तीन वर्षो के बीच सबसे ज्यादा 81.82 लाख रुपये का जुर्माना उत्तराखंड सरकार ने वसूला. गैर सरकारी संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया ने वर्ष 2005 में कानून लागू होने से लेकर वर्ष 2018 के बीच इसके क्रियान्वयन की पड़ताल की तो ये आंकड़े सामने आए. संस्था ने आरटीआई दिवस (12 अक्टूबर) की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को यह रिपोर्ट जारी की है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि आरटीआई आवेदनों पर 30 दिन के भीतर सूचना न मिलने पर 21 लाख 32 हजार 673 अपील हुई, जिसमें कुल 15 लाख 578 अफसरों पर पेनाल्टी की कार्रवाई हुई. रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र और राज्य के स्तर पर सूचना आयुक्तों के कुल 155 में से 24 पद खाली हैं. देश में केवल सात महिला सूचना आयुक्त हैं. छत्तीसगढ़ इकलौता राज्य है, जिसने 2005 से लेकर 2018 तक लगातार वार्षिक रिपोर्ट जारी की है, वहीं 28 में से सिर्फ नौ राज्यों ने ही 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट जारी की है.
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रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे ज्यादा 78,93, 687 आरटीआई आवेदन केंद्र सरकार को मिले, वहीं दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र रहा, जहां 61,80,069 आवेदन आए, तमिलनाडु में 26,91, 396 कर्नाटक में 22,78, 082 और केरल में 21,92, 571 आवेदन आए. ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक रमानाथ झा ने आईएएनएस को बताया, "सूचना का अधिकार अधिनियम बनाने के पीछे भले ही सरकारी काम में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार उन्मूलन की सोच रही, मगर रसूखदार कुर्सियों पर बैठे लोगों की मानसिकता नहीं बदली है. अपील की संख्या को देखने से पता चलता है कि अफसर सूचना देने में टालमटोल करते हैं. केंद्रीय सूचना आयोग, राजस्थान और गुजरात सरकार को छोड़कर अन्य राज्यों की वेबसाइट नियमित रूप से अपडेट नहीं होतीं."
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