रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के पूर्वी यूक्रेन में एक सैन्य अभियान की घोषणा के घंटों के बाद भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा है कि रूसी सैन्य अभियान पूर्वी यूक्रेन में दोनेस्क और लुहांस्क तक सीमित नहीं होगा. भारतीय विशेषज्ञों ने हालांकि यह भी कहा कि यह निष्कर्ष निकालना या अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी कि रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण शुरू कर दिया है. पुतिन के कदम पर विशेषज्ञों ने कहा कि उनका बयान डोनबास क्षेत्र तक सीमित था जहां विद्रोहियों ने यूक्रेन की सेना के खिलाफ रूसी सैन्य मदद मांगी थी.
अमेरिकी रवैये ने प्रेरित हुए पुतिन
मेजर जनरल अशोक कुमार (सेवानिवृत्त)ने मौजूदा संकट के बारे में बात करते हुए कहा, 'एक बार जब रूसी सैनिकों ने यूक्रेन को तीन तरफ से घेर लिया था, तो ऐसा लग रहा था कि युद्ध अपरिहार्य है. हालांकि राजनयिक प्रयासों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की चिंताओं के कारण शुरूआती दौर में उम्मीद जगी थी कि शायद इसे टाला जा सकता है.' हालाँकि रूस ने जो दो पूर्व-शर्तें निर्धारित की थीं, उनमें से एक यूक्रेन को नाटो बलों में शामिल करने वाली शर्त पर कोई बातचीत संभव नहीं थी. 'चूंकि नाटो या अमेरिका की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी तो ऐसे में पुतिन के लिए अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़ना अनिवार्य हो गया था.'
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दोनेस्क और लुहांस्क को रूसी मान्यता से बढ़ी रार
उन्होंने पहला काम पूर्वी डोनबास क्षेत्र के दोनेस्क और लुहांस्क को स्वतंत्र देशों के रूप में मान्यता देकर किया जिनकी 90 प्रतिशत से अधिक रूसी आबादी है और ये मुख्य रूप से रूसी समर्थक हैं. कुमार ने कहा, 'क्योंकि दोनेस्क और लुहांस्क की सरकारों के मुताबिक यूक्रेन ने उनके क्षेत्रों में बमबारी और घुसपैठ करनी शुरू कर दी थी, जो 2015 मिन्स्क समझौते में तय की गई थी. उसके बाद रूसी सेना डोनबास क्षेत्र में चली गई.' उन्होंने आगे कहा कि ऐसी रिपोर्टे हैं कि यूक्रेन के अन्य हिस्सों में भी भारी गोलाबारी हुई है और मिसाइल हमलों से कई सैन्य ठिकानों को नष्ट कर दिया गया है.
रूस की साम्राज्यवादी नीति का हिस्सा है युक्रेन पर हमला
उन्होंने कहा, 'अब युद्ध किस चरण में जाएगा यह निर्णय का विषय है, क्योंकि इस मामले को देखते हुए अमेरिका और नाटो ने कड़ा रुख अपनाया है.' मनोहर पर्रिकर-इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस (एमपी-आईडीएसए) में एसोसिएट फेलो स्वस्ति राव ने कहा, 'रूस लंबे समय से अपनी सैन्य शक्ति में सुधार कर रहा था और इसे पिछले दो महीनों के विकास के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. यह इसकी साम्राज्यवादी योजना का हिस्सा है.'
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भारत-रूस संबंध भी कसौटी पर
जहां तक भारत और रूस के सैन्य संबंधों का सवाल है तो भारत 50 से 70 फीसदी सैन्य आपूर्ति के लिए रूस पर निर्भर है. राव ने कहा 'हालांकि भारत ने सैन्य खरीद के क्षेत्र में स्वदेशीकरण को अपनाते हुए भारतीयकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है, फिर भी हम काफी हद तक रूस पर निर्भर हैं.' राव ने रूस पर लगाए जाने वाले आर्थिक प्रतिबंधों के बारे में कहा, 'अभी हमें इंतजार करने और देखने की जरूरत है कि आने वाले दिनों में रूस पर किस तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं. अमेरिका,अगर त्वरित बैंकिंग प्रतिबंध लगाता है तो यह रूस के लिए एक झटका होगा और यदि अमेरिका ने सीएटीएसए प्रतिबंध लगाया, तो सैन्य उपकरणों का आयात मुश्किल होगा.'
पुतिन दुनिया को दे चुके चेतावनी
अब तक पुतिन ने यह कहा है कि वह केवल दोनेस्क और लुहांस्क तक खुद को सीमित करना चाहते हैं, लेकिन अपने बार-बार के संबोधन में पुतिन ने कीव को रूसी सभ्यता का पालना बताया है. मुझे इस बात को लेकर संदेह है कि रूस लंबे समय में केवल पूर्वी क्षेत्र तक ही सीमित रहेगा, लेकिन वह अब नीपर नदी से पहले अपने आपको सीमित कर सकता है.' गुरुवार को रूस ने यूक्रेन में एक सैन्य अभियान शुरू किया था और पुतिन ने अन्य देशों को पूर्वी यूक्रेन में उनके मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने की चेतावनी भी दी थी. पुतिन ने कहा था, 'जो कोई भी देश बाहर से हस्तक्षेप करने पर विचार करेगा यदि आप ऐसा करते हैं, तो आपको इतिहास में सबसे अधिक गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. सभी तरह के निर्णय ले लिए गए हैं और मुझे आशा है कि आप इस पर ध्यान देंगे.' इस बीच, वैश्विक समुदाय, विशेष रूप से पश्चिम देशों और अमेरिका ने रूसी राष्ट्रपति पर यूक्रेनी क्षेत्र पर अकारण हमला करने का आरोप लगाया है.
HIGHLIGHTS
- रूस के यूक्रेन पर हमले को भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञों ने आंका
- आशंका जताई कि रूसी हमले डोनबास से आगे भी जाएंगे
- अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत-रूस संबंध भी कसौटी पर आए