Sabarimala Temple Case: SC का पुनर्विचार याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश देने के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया.

author-image
vinay mishra
एडिट
New Update
सबरीमला मंदिर 16 नवंबर को खुलेगा, आंदोलन का स्थल नहीं : मंत्री

sabarimala temple case

Advertisment

सुप्रीम कोर्ट ने सबरीमाला मंदिर में 10-50 वर्ष की महिलाओं को प्रवेश देने के संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिकाओं पर जल्द सुनवाई करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया. मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई की पीठ ने याचिका खारिज कर दी. पुनर्विचार याचिका पर वही न्यायाधीश विचार करते हैं, जिन्होंने फैसला दिया है. नायर सर्विस सोसाइटी (एनएसएस) व अन्य ने सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले को वापस लिए जाने के लिए सोमवार को सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की.

केरल सरकार ने कहा फैसला लागू कराएगी
वहीं इस बीच केरल सरकार ने कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को लागू करने के लिए कदम उठाएगी.

ये है सबरीमाला मामला
केरल के सबरीमाला मंदिर(sabarimala temple) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुना दिया है. सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं की एंट्री पर सुप्रीम कोर्ट ने हरी झंडी दिखा दी है. इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) के पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया. अदालत ने कहा कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है.

कोर्ट ने अपने फैसले में 10 से 50 वर्ष के हर आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश को लेकर हरी झंडी दिखा दी है. 5 न्यायाधीशों की खंडपीठ में एकमात्र महिला न्यायाधीश ने इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया.

आइये जानते हैं केरल में सबरीमाला स्थित अय्यप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने वाले उच्चतम न्यायालय के फैसले से जुड़ा घटनाक्रम :

5 अप्रैल, 1991 : केरल उच्च न्यायालय ने मंदिर में एक खास आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध बरकरार रखा.
4 अप्रैल, 2006 : इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयुवर्ग की महिला श्रद्धालुओं का प्रवेश सुनिश्चत करने की मांग की.
नवंबर 2007 : केरल की एलडीएफ सरकार ने महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध पर सवाल उठाने वाली जनहित याचिका का समर्थन करते हुए हलफनामा दाखिल किया. 

11 जनवरी 2016 : उच्चतम न्यायालय के दो न्यायाधीशों की पीठ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को प्रतिबंधित करने वाली परपंरा पर सवाल उठाया.
6 फरवरी 2016 : राज्य की कांग्रेस नीत यूडीएफ सरकार ने अपने रूख से पलटते हुए शीर्ष न्यायालय से कहा कि वह इन श्रद्धालुओं के धार्मिक व्यवहार के अधिकारों का संरक्षण करने के लिए कर्तव्यबद्ध है.
11 अप्रैल 2016 : शीर्ष न्यायालय ने कहा कि महिलाओं पर प्रतिबंध लगा कर लैंगिक न्याय को जोखिम में डाला गया.
13 अप्रैल 2016 : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध की परंपरा उचित नहीं ठहरायी जा सकती है.
21 अप्रैल 2016 : हिंद नवोत्थान प्रतिष्ठान एवं नारायणशर्मा तपोवनम ने महिलाओं के प्रवेश का समर्थन करते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की.
7 नवंबर 2016 : एलडीएफ सरकार ने शीर्ष न्यायालय में एक नया हलफनामा देकर कहा कि वह सभी आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश के समर्थन में है.
13 अक्तूबर, 2017 : उच्चतम न्यायालय ने मामले को संविधान पीठ के पास भेज दिया.

27 अक्तूबर 2017 : मामले की सुनवाई लैंगिक समानता वाली पीठ से कराने के लिए शीर्ष न्यायालय में याचिका दायर.

17 जुलाई,2018 : पांच न्यायाधीशों की सदस्यता वाली संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की.

और पढ़ें : सबरीमाला मंदिर विवाद: SC ने कहा, पुरुषों की तरह महिलाएं भी मंदिर में कर सकती हैं पूजा

19 जुलाई 2018 : शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मंदिर में प्रवेश करना महिलाओं का मूल अधिकार है और आयुवर्ग के पीछे के तर्क पर सवाल उठाया.
24 जुलाई 2018 : शीर्ष न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को संवैधानिक लोकचार पर परखा जाएगा.
25 जुलाई 2018 : नायर सर्विस सोसाइटी ने शीर्ष न्यायालय से कहा कि सबरीमाला मंदिर के प्रमुख देवता भगवान अय्यप्पा के ब्रह्मचारी प्रकृति का संविधान द्वारा संरक्षण किया गया है.
26 जुलाई 2018: शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वह महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध से बेखबर बना नहीं रह सकता क्योंकि उन्हें मासिक धर्म के मनोवैज्ञानिक आधार पर प्रतिबंधित रखा गया है.
31 जुलाई 2018: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में कुछ लोगों को बाहर रखने पर प्रतिबंध के कुछ मायने हैं.
1 अगस्त 2018: उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रख लिया.
28 सितंबर 2018 : शीर्ष न्यायालय के 4: 1 के बहुमत से अपने फैसले में सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत देते हुए कहा कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लैंगिक भेदभाव है और यह परिपाटी हिंदू महिलाओं के अधिकारों का हनन करती है.

Source : IANS

Supreme Court SC Kerala Government Plea sabarimala temple case implement the SCverdict
Advertisment
Advertisment
Advertisment