सबरीमलाः कानून के सवालों को वृहद् पीठ को भेज सकते हैं या नहीं, नौ न्यायाधीश की पीठ करेगी निर्णय

नौ न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि वह उन मुद्दों पर 12 फरवरी से दिन प्रतिदिन सुनवायी करेगी.

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Ravindra Singh
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Sabarimala Temple

सबरीमला मंदिर( Photo Credit : न्यूज स्टेट)

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नौ न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह इस जटिल कानूनी मुद्दे का जवाब आठ फरवरी को देगी कि उच्चतम न्यायालय पुनरीक्षा अधिकार क्षेत्र के तहत अपनी सीमित शक्ति का प्रयोग करते हुए कानूनी प्रश्नों को वृहद पीठ के पास भेज सकती है या नहीं. प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि वह अपना आदेश शनिवार को सुनाएगी और विभिन्न धर्मों में महिलाओं के साथ भेदभाव से निपटने के लिए एक न्यायिक नीति विकसित करने सहित बड़े मुद्दे तय करेगी. नौ न्यायाधीशों वाली पीठ ने कहा कि वह उन मुद्दों पर 12 फरवरी से दिन प्रतिदिन सुनवायी करेगी जिन्हें 14 फरवरी, 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों वाली संविधान पीठ द्वारा भेजा गया था.

सबरीमाला मामले के अलावा, फैसले में मुस्लिम महिलाओं के मस्जिदों और दरगाहों में प्रवेश और गैर पारसी पुरुषों से विवाह करने वाली पारसी महिलाओं के पवित्र अग्नि स्थल अगियारी में जाने पर पाबंदी से जुड़े मुद्दों को वृहद पीठ को भेजा गया था. पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एम एम शांतानागौदर, न्यायमूर्ति एस ए नजीर, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्य कांत हैं. दिनभर की सुनवायी के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ताओं जैसे एफ एस नरीमन, राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह और श्याम दीवान ने दलील दी कि 2018 सबरीमला फैसले को चुनौती देने वाली पुनरीक्षा याचिकाओं पर फैसला किये बिना इसे एक वृहद पीठ को सौंपने में पांच न्यायाधीशों की पीठ गलत थी. उक्त फैसले में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को पर्वतीय मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी गई थी.

नरीमन ने कहा कि रिट याचिका की गुंजाइश पुनरीक्षा याचिकाओं से अलग है और रिट में शीर्ष अदालत के पास इसे बड़ी पीठ को सौंपने की सभी शक्तियां होती हैं लेकिन पुनरीक्षा क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते हुए यह अदालत मुद्दों को एक बड़ी पीठ को नहीं सौंप सकती. उन्होंने सबरीमाला मामले में पांच-न्यायाधीशों की पीठ के 2018 के निष्कर्षों का उल्लेख किया और कहा कि यह कहा गया था कि भगवान अयप्पा के अनुयायी एक अलग धार्मिक संप्रदाय के तहत नहीं आते जो संविधान के तहत संरक्षण के हकदार हैं ताकि वे वह पुरानी परंपरा जारी रख सकें जिसमें महिलाओं के कुछ आयु समूह को मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश पर रोक है. पीठ ने कहा कि सबरीमाला पुनरीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत को यह पता चला उसके समक्ष इसी तरह के मुद्दे लंबित थे.

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इसलिए, इसने पहले एक प्राधिकृत फैसला देने और फिर इन सभी मुद्दों से निपटने का फैसला किया जो अनुच्छेद 25 और 26 (धर्म के अधिकार) की व्याख्या से संबंधित हैं. नरीमन ने कहा कि कई सवाल हैं और इसको लेकर उत्सुकता जतायी कि अदालत प्रत्येक मामले के तथ्यों को जाने बिना इन मुद्दों से कैसे निपटेगी. पीठ ने कहा कि (सबरीमला मामले में) एक फैसला है और रिट याचिकाएं जो उसके समक्ष शपथ दस्तावेज हैं उन पर भरोसा किया जा सकता है. नरीमन के रुख का धवन, जयसिंह, दीवान और वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने अपने दलीलों के दौरान मोटे तौर पर समर्थन किया गया कि शीर्ष अदालत पुनरीक्षा अधिकार क्षेत्र के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए किसी मामले को वृहद पीठ के पास नहीं भेज सकती.

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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि शीर्ष अदालत विधिक सवालों को वृहद पीठ के पास भेजने को लेकर सही है. मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में, कानून के इन सवालों पर एक प्राधिकृत फैसला देना न्यायालय का कर्तव्य था. मेहता के विचारों का वरिष्ठ अधिवक्ता के पारासरन, ए एम सिंघवी, रंजीत कुमार, वी गिरि और अन्य ने समर्थन किया.

Source : News Nation Bureau

Supreme Court Sabarimala 9 Judges Bench SC Decision on Sabarimala Temple
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