सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र के महिलाओं की प्रवेश को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुमति मिलने के विरोध में शनिवार को कोट्टयम में अयप्पा भक्तों ने मार्च निकाला। इस मार्च में अधिकतर महिलाएं शामिल थी। इनकी मांग है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करे और एक अध्यादेश लेकर आए ताकि मंदिर की परंपरा और रीति-रिवाजों को बचाया जा सके। बता दें कि हाल ही में केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने साफ किया था कि राज्य सरकार सबरीमाला मंदिर को सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कोई पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगी।
इससे पहले राज्य में कई जगहों पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। विभिन्न हिंदू संगठनों के समर्थकों ने हाल ही में उच्चतम न्यायालय फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। अदालत के फैसले के बाद सबरीमाला मंदिर के कपाट को सभी उम्र की महिलाओं के लिए खोला गया था।
राज्य सरकार का सबरीमाला पर बयान
केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा था कि हम सबरीमाला में जाने के लिए महिला भक्तों को सुविधा और सुरक्षित मुहैया कराएंगे। उन्होंने कहा कि सबरीमाला के पास कानून-व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए केरल और अन्य पड़ोसी राज्यों से महिला पुलिस कर्मियों को तैनात किया जाएगा।
पिनरई विजयन ने साफ शब्दों में कहा कि जो महिलाएं सबरीमाला जाना चाहती हैं उन्हें कतई रोका नहीं जा सकता है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को ऐतिहासिक फैसला देते हुए केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 आयुवर्ग की सभी महिलाओं को प्रवेश की मंजूरी दी थी।
इससे पहले बीते सोमवार को केरल सरकार ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के लिए अलग पंक्ति बनाना भी अव्यवहारिक है। राज्य सरकार की एक उच्च स्तरीय कमेटी ने सबरीमाला में सभी वर्ग के महिलाओं के प्रवेश को लेकर प्रबंधन के मुद्दों पर चर्चा की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला
अदालत ने कहा था कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत की पांच सदस्यीय पीठ में से चार ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाया जबकि पीठ में शामिल एकमात्र महिला जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग राय रखी थी।
मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने जस्टिस एम.एम. खानविलकर की ओर से फैसला पढ़ते हुए कहा, 'शारीरिक या जैविक आधार पर महिलाओं के अधिकारों का हनन नहीं किया जा सकता। सभी भक्त बराबर हैं और लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं हो सकता।'
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जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन ने अलग लेकिन समवर्ती फैसला सुनाते हुए कहा कि सभी धर्मो के लोग मंदिर जाते हैं। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने भी अलग लेकिन समवर्ती फैसले में कहा,"धर्म महिलाओं को उनके पूजा करने के अधिकार से वंचित नहीं रख सकता।
अदालत ने कहा था कि सबरीमाला मंदिर किसी संप्रदाय का मंदिर नहीं है। अयप्पा मंदिर हिंदुओं का है, यह कोई अलग इकाई नहीं है।
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Source : News Nation Bureau