राजस्थान उच्च न्यायालय (Rajasthan High Court) की खंड पीठ ने कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को अयोग्य ठहराने के बारे में विधानसभा अध्यक्ष के नोटिस को चुनौती देने वाली विधायकों की याचिका पर सुनवाई चल रही है. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती और न्यायमूर्ति प्रकाश गुप्ता की पीठ सचिन पायलट (Sachin Pilot) और कांग्रेस के 18 अन्य विधायकों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. अदालत ने कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी की याचिका को इस मामले में प्रतिवादी के तौर पर शामिल करने की मंजूरी दी है. बता दें कि सचिन पायलट गुट ने स्पीकर के नोटिस के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कई मागों को लेकर पायलट गुट ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है.
इन मांगों को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट पहुंचा है सचिन पायलट गुट
- स्पीकर के नोटिस को रद्द किया जाए.
- 10वीं अनुसूची के क्लॉज-2 (1) (a) को असंवैधानिक घोषित किया जाए.
- अदालत ये घोषित करे कि वो कांग्रेस पार्टी में रहते हुए ही सदन के सदस्य हैं.
- अदालत ये घोषित करे कि याचिकाकर्ताओं का इस कदम के चलते उन्हें विधानसभा से अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है.
याचिका के पीछे किस तरह का तर्क?
इसके अलावा याचिका में पायलट गुट की ओर से कहा गया है, 'उन्होंने न कोई बयान दिया, न ही ऐसा कोई काम किया जिससे ये लगे कि वो कांग्रेस पार्टी छोड़ना चाहते है. उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से पार्टी के भीतर नेतृत्व के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन जिस तरह से अयोग्य करार देने की प्रक्रिया शुरू की गई, उससे साफ है कि उनकी आवाज को दबाने की कोशिश की गई है, जो उनके मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.' आगे कहा गया, 'पार्टी नेतृत्व के खिलाफ असंतोष या यहां तक कि मोहभंग की अभिव्यक्ति को भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची के खंड 2 (1) (ए) के तहत आने वाला आचरण नहीं माना जा सकता है.
याचिका में कहा गया है कि यदि विचारों और राय की अभिव्यक्ति, चाहे कितने भी जोरदार शब्दों में हो, को क्लॉज 2 (1) (ए) का एक हिस्सा माना जा रहा है तो उक्त प्रावधान को जांच के दायरे में नहीं ला सकते और इसे सामान्य रूप से भारत के संविधान की मूल संरचना के विपरीत घोषित किया जाना चाहिए. याचिका में कहा गया है कि ये कदम विशेष रूप से अनुच्छेद-19 (1) (ए) के तहत बोलने की आजादी के अधिकार के खिलाफ है, इसलिए नोटिस को रद्द किया जाए.'
इसमें कहा गया है कि चूंकि स्पीकर द्वारा अयोग्य ठहराने के लिए नोटिसों का आधार कुछ विधायकों द्वारा नेतृत्व के प्रति असंतोष के भाव के कारण है, इसलिए यह आवश्यक है कि उच्च न्यायालय 10वीं अनुसूची के तहत लगाए गए प्रावधान की वैधता की जांच करे. अयोग्य ठहराए जाने के नोटिसों को रद्द करने के अलावा संशोधित याचिका में 10 वीं अनुसूची के क्लॉज 2 (1) (a) को असंवैधानिक घोषित करने की भी मांग की गई है.
बता दें कि ये कहते हुए कि यह बोलने की आजादी के मौलिक अधिकार के खिलाफ है. सचिन पायलट व 18 विधायकों ने 10वीं अनुसूची के क्लॉज- 2 के 1 ( a) की संवैधानिकता को चुनौती दी है. उल्लेखनीय है कि इस क्लॉज में कहा गया है कि किसी भी सदस्य को सदन से अयोग्य करार दिया जा सकता है, अगर उसने स्वैच्छिक तौर पर राजनीतिक पार्टी की सदस्यता छोड़ दी हो. हालांकि सुप्रीम कोर्ट का पांच जजों का संविधान पीठ 1992 में एक फैसले में पूरी दसवीं अनुसूची को बरकरार रख चुका है.
दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत एक राजनीतिक दल को अपने विधायकों को व्हिप जारी करने का संवैधानिक अधिकार है. हम पार्टी के सदस्य हैं और कभी भी किसी ऐसी चीज में लिप्त नहीं हैं जो गहलोत-सरकार को गिराए. हम पार्टी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करना जारी रखे हुए हैं और किसी भी अन्य पार्टी में नहीं जाना चाहते हैं, जिससे सरकार में कमी हो जिसका वे हिस्सा रहे हैं.
याचिका में कहा गया है, 'हम आशंका व्यक्त करते हैं कि स्पीकर अशोक गहलोत के दबाव और प्रभाव में उन्हें अयोग्य ठहराएंगे. हम जारी किए गए नोटिसों की वैधता को चुनौती देते हैं. यह सरकार के नेतृत्व को बदलने के लिए उनके असंतोष के लोकतांत्रिक अधिकार को छीनने का प्रयास है. पार्टी की बैठकों में भाग लेने में विफलता संविधान की दसवीं अनुसूचि के पैरा 2 (ए) या 2 (बी) के तहत अयोग्य घोषित करने का आधार नहीं है.'
स्टे नहीं मिला तो बढ़ेंगी पायलट की दिक्कतें!
सचिन पायलट और अन्य 18 विधायकों की याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है. ऐसे में सभी की निगाहें हाईकोर्ट पर निर्णय पर टिकी हैं, क्योंकि अब अगर अदालत नोटिस पर स्टे नहीं देता है तो सचिन पायलट के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं. नोटिस पर स्टे नहीं दिया जाता है, तो गहलोत गुट में कुछ बागी विधायक वापसी कर सकते हैं, क्योंकि तब उनको अपनी सदस्यता खोने का डर होगा.