प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने सवर्ण जातियों को आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण लोगों को सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा. सरकार ने मंगलवार को लोकसभा से संविधान में संशोधन प्रस्ताव पास करा लिया. अब आज इसे राज्यसभा से पास होना है. वैसे विपक्ष का रुख देखते हुए ऐसा नहीं लग रहा कि सरकार को इसे पास कराने में कोई अड़चन आएगी. ऐसा हुआ तो यह छठी कोशिश होगी.
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संविधान के अनुसार, आरक्षण का पैमाना सामाजिक असमानता है और किसी की आय और संपत्ति के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 16(4) के अनुसार, आरक्षण किसी समूह को दिया जाता है और किसी व्यक्ति को नहीं. इस आधार पर पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई बार आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के फैसलों पर रोक लगा चुका है. अपने फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाना समानता के मूल अधिकार का उल्लंघन है.
कब-कब हुआ है खारिज ?
- अप्रैल, 2016 में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी. सरकार के इस फैसले के अनुसार 6 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाने की बात कही गई थी. हालांकि अगस्त 2016 में हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था.
- सितंबर 2015 में राजस्थान सरकार ने अनारक्षित वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था. हालांकि दिसंबर, 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आरक्षण बिल को रद्द कर दिया था. ऐसा ही हरियाणा में भी हुआ था.
- 1978 में बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को तीन फीसदी आरक्षण दिया था. हालांकि बाद में कोर्ट ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया.
- 1991 में मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के ठीक बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया था और 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था.
- 1999 में कांग्रेस सरकार ने भी दिया था सवर्णों को 10 फीसदी रिज़र्वेशन - सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया था निरस्त
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पिछड़े वर्गों के आर्थिक , सामाजिक व शैक्षणिक हालात का जायजा लेने के लिए केंद्र सरकार ने 1979 में मंडल आयोग का गठन किया था. बिहार के बीपी मंडल आयोग के अध्यक्ष बने थे. आयोग ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी. मंडल आयोग की सिफारिशों के केंद्रीय स्तर पर लागू करने का फैसला प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने 1990 में किया. उन्होंने मंडल आयोग के सुझावों के साथ सवर्णों में पिछड़ों को भी 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी. मंडल आयोग के सुझावों के लागू होते ही भयंकर विरोध प्रारंभ हुआ और सवर्णों के आरक्षण का मसला ठंडे बस्ते में चला गया.
Source : DRIGRAJ MADHESHIA