असम में पिछले 6 साल से अवैध तरीके से रह रहे 7 रोहिंग्या लोगों को वापिस म्यांमार भेजे जाने का रास्ता साफ हो गया है. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के इस कदम के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि म्यांमार के इन्हें अपना नागरिक मानने के बाद और उनकी वापिसी के पूरे इंतजाम होने के बाद ही एक प्रकिया के तहत इन्हें भेजा जा रहा है. जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार की दलीलों से सहमति जताते हुए इस मामले में दखल देने से इंकार कर दिया
याचिकाकर्ता की दलील
सुप्रीम कोर्ट में याचिका एक रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद सलिमुल्लाह ने दायर की थी. याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि म्यांमार में हालात बहुत खराब है और इन्हें अगर वापिस भेज जाता है तो वहां उनकी जान को खतरा है. याचिका में कहा गया था कि सरकार का यह कदम आर्टिकल 14 (समानता के अधिकार), आर्टिकल 21( जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार और अंतरराष्ट्रीय कानून ( आर्टिकल 51 C) का उल्लंघन है.
सरकार की दलील
सरकार ने कोर्ट में याचिका का विरोध किया. केंद्र सरकार की ओर से एएसजी तुषार मेहता ने बताया कि ये लोग 2012 में आए थे, तब से असम के सिलचर में हिरासत में हैं. ये सब फॉरनर एक्ट के तहत दोषी है. इनकी हिरासत की अवधि पूरी हो चुकी है, ये खुद वापस जाने को तैयार है. म्यांमार सरकार ने उन्हें अपना नागरिक माना है, इन्हें वापस लेने को तैयार है. वहां की सरकार ने इनके वापस जाने के लिए यात्रा दस्तावेज जारी कर दिए है.
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चीफ जस्टिस की टिप्पणी
कोर्ट के रुख को भांपते हुए वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि रोहिंग्या नरसंहार झेल रहे है, ये अदालत की जिम्मेदारी है कि उनके हितों की रक्षा करे. इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने उन्हें टोकते हुए कहा कि आपको हमारी जिम्मेदारी याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है. हमे इसका अच्छे से पता है.
Source : Arvind Singh