देशद्रोह कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख इख्तियार कर लिया है. कोर्ट इस मामले में केंद्र सरकार के किसी भी टालमटोल वाले रवैये को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है. देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर विचार कर रहे कोर्ट ने कल तक सरकार से जवाब तलब किया है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124A की संवैधानिक वैधता पर विचार कर रहा है, जिसे केंद्र सरकार ने यह कहते हुए स्थगित करने की मांग की थी कि सरकार इस कानून की वैद्यता की समीक्षा कर रही है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान अस्तित्व में आए राजद्रोह कानून की समीक्षा के लिए अदालत से समय मांगा था. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से यह भी कहा कि वह देशद्रोह कानून के तहत लंबित मामलों की जानकारी दें. साथ भी यह भी बताएं कि इन मामलों से कैसे निपटेगी. इसके साथ ही अदालत ने इस मामले की सुनवाई के 11 मई की तारीख तय की है.
3-4 महीने में समाप्त किया जाए राजद्रोह कानून
दरअसल, औपनिवेशिक युगीन कानून को रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हो रही सुनवाई पर सरकार ने रोक लगाने की मांग की थी. सरकार की ओर से कहा गया था कि सरकार इस कानून की समीक्षा कर रही है. कोर्ट ने इसे मानते हुए सरकार को सलाह किया है कि इस कानून को 3-4 महीने में समाप्त कर दिया जाए. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार से देशद्रोह कानून के तहत लंबित मामलों की जानकारी भी देने के साथ ही यह भी बताने के लिए कहा है कि सरकार इन से कैसे निपटेगी. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया है कि देशद्रोह कानून की समीक्षा होने तक इस कानून के तहत दर्ज सभी केसों को स्थगित रखा जाए.
सरकार साफ-साफ बताइए कि समीक्षा के लिए कितना वक्त चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि उसे देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार करने के लिए कितना समय चाहिए, जिस पर तुषार मेहता ने जवाब दिया कि पुनर्विचार प्रक्रियाधीन है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार का काम 3-4 महीने में पूरा करने का सुझाव दिया. इससे पहले केंद्र की ओर से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने देश की संप्रभुता और अखंडता का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कार्यकारी स्तर पर राजद्रोह कानून पर पुनर्विचार की आवश्यकता है. उन्होंने औपचारिक रूप से राजद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई टालने की मांग की. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने भी औपनिवेशिक युगीन दंडात्मक कानून को खत्म करने वाले फैसले को टालने पर सहमति व्यक्त की , लेकिन इसके साथ ही कोर्ट केंद्र सरकार से इस बात का जवाब देने को कहा है कि देशद्रोह कानून पर पुनर्विचार होने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा कैसे की जाएगी.
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अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने किया विरोध
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की ओर से कोर्ट में रखे गए तर्कों का वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने विरोध करते हुए कहा कि अदालत की कवायद को रोका नहीं जा सकता, क्योंकि विधायिका को इस कानून पर पुनर्विचार करने में छह महीने या एक साल तक का समय लगेगा. लिहाजा कोर्ट को देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता की जांच का काम जारी रखना चाहिए.
HIGHLIGHTS
- देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता की जांच कर रहा है सुप्रीम कोर्ट
- सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से की देशद्रोह कानून पर सुनवाई रोकने की अपील
- सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, सरकार कब तक खत्म करेगी यह औपनिवेशिक कानून