सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मलयालम उपन्यास 'मीशा' के एक हिस्से पर प्रतिबंध लगाने की याचिका खारिज करते हुए कहा कि उपन्यास के बारे में व्यक्तिपरक धारणा को लेखक के रचनात्मक कल्पना को बाधित करने के लिए कानूनी क्षेत्र में आने की अनुमति नहीं दी जा सकती। याचिका को खारिज करते हुए मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड ने कहा कि एक पुस्तक को इसके पूरे स्वरूप में देखा जाना चाहिए न कि कुछ हिस्सों के तौर पर देखा जाना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि लेखकों के पास शब्दों, विचारों, भाषा, धारणा के साथ खुलकर प्रयोग करने की आजादी होनी चाहिए।
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याचिकाकर्ता ने उपन्यास के एक हिस्से पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि महिलाओं और मंदिर के पुजारियों को 'आपत्तिजनक' संदर्भ में पेश किया गया है।
Source : IANS