सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि कोर्ट में संसदीय समिति की रिपोर्ट को न तो खारिज किया जा सकता है और न ही उसकी वैधता पर सवाल उठाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा, अदालतें कानून के मुताबिक विधिक व्याख्या के लिए संसदीय समिति की रिपोर्ट का संदर्भ दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अदालतें संसदीय समिति की रिपोर्ट पर न्यायिक संज्ञान ले सकती है लेकिन उसे चुनौती नहीं दिया जा सकता है।
मामले की सुनवाई कर रहे 5 जजों की पीठ ने कहा, 'संसदीय समिति की रिपोर्ट में सांसदों की सत्यता और उनके फैसले को लेकर अदालतों में प्रश्न नहीं पूछे जा सकते हैं।'
कैंसर की दवाओं को लेकर कल्पना मेहता नाम की एक महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह बातें कही।
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कल्पना मेहता ने अपनी याचिका में गुजरात और आंध्र प्रदेश में सर्वाइकल कैंसर जैसी गंभीर बिमारी से जूझ रही आदिवासी महिलाओं को दिए जाने वाले वैक्सीन का लाइसेंस रद्द करने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि कैंसर के जो वैक्सीन भारत में बेचे जा रहे हैं वो अप्रमाणिक और खतरनाक हैं।
साल 2014 के संसदीय समिति की रिपोर्ट को आधार बनाकर याचिकाकर्ता कल्पना ने कोर्ट से इन वैक्सीन के लाइसेंस को रद्द करने का आदेश देने की मांग की थी।
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Source : News Nation Bureau