सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन को अदालत के अवमानना का दोषी माना है। जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें छह महीने जेल की सजा सुनाई है। कोर्ट ने मीडिया को आदेश देते हुए कहा है कि जस्टिस कर्णन के आदेश और उनके बयान पर कोई भी खबर प्रकाशित न करे।
भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी जब किसी सीटिंग हाईकोर्ट के जज के खिलाफ कोर्ट के आवमानना के खिलाफ सजा सुनाया गया हो।
इससे पहले जस्टिस कर्णन ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर और शीर्ष अदालत के सात अन्य न्यायाधीशों को पांच वर्ष सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।
शीर्ष अदालत के कई न्यायाधीशों के खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप लगा चुके और अदालत की अवमानना और न्याय प्रणाली की छवि धूमिल करने के आरोप झेल रहे कर्णन ने आठों न्यायाधीशों को एक 'दलित न्यायाधीश' (खुद कर्णन) को 'समान मंशा' से प्रताड़ित करने का दोषी ठहराया।
कर्णन ने अपने 12 पन्नों के आदेश में कहा था कि आरोपियों ने 'अनुसूचित जाति/जनजाति (प्रताड़ना से संरक्षण) अधिनियम-1989 एवं संशोधित अधिनियम-2015' के तहत दंडनीय अपराध किया है।
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हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कर्णन से किसी तरह के न्यायिक या प्रशासनिक कामकाज का अधिकार छीन चुकी है और सभी सरकारी प्राधिकरणों एवं न्यायाधिकरणों को कर्णन द्वारा दिए गए किसी 'तथाकथित' आदेश को संज्ञान में न लेने का निर्देश दे चुकी है।
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कर्णन द्वारा सोमवार को जिन न्यायाधीशों को सजा सुनाई गई उनमें चीफ जस्टिस खेहर के अलावा न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे. चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी. लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र बोस, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ और न्यायमूर्ति आर. बानुमती शामिल हैं।
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Source : News Nation Bureau