अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को प्रमोशन (प्रोन्नति) में आरक्षण दिये जाने के मुद्दे पर अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई करेगा।
जस्टिस कुरियन जोसेफ की बेंच ने चीफ जस्टिस को संवैधानिक पीठ के गठन के लिए कहा है। मध्य प्रदेश, त्रिपुरा और बिहार सरकार ने एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसलों को चुनौती दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों की दलील और साल 2006 में दिए गए एम नागराज बनाम केंद्र सरकार (2000) के मामले में फैसले के मद्देनजर पूरे मसले को विचार के लिए बड़ी बेंच के पास भेजने का निर्णय लिया।
एम नागराज के फैसले में पांच जजों ने कहा था कि प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले सरकार को आंकड़े जुटाने होंगे कि आरक्षण पाने वाला वर्ग पिछड़ा है और उसका नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
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हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट भी एससी एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर न होने पर सवाल उठा चुका है। इस पर राज्य सरकारों की दलील थी कि एससी-एसटी में पिछड़ेपन का फॉर्मूला नहीं लागू होता।
एससी-एसटी सूची से किसी वर्ग को सिर्फ संसद ही कानून बना कर बाहर कर सकती है और एससी-एसटी को आरक्षण पिछड़ापन के लिए नहीं दिया गया है बल्कि उसके साथ हुए सामाजिक भेदभाव के लिए है। व्यक्ति कितना भी ऊपर उठ जाए उसकी जाति उसके साथ रहती है।
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Source : Arvind Singh