पुरी में वार्षिक रथ-यात्रा से पहले सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ मंदिर के प्रशासन को किसी की जाति, मजहब से हटकर आस्था को देखते हुए लोगों को शामिल होने देने का निर्देश दिया।
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय आदर्श गोयल, एस अब्दुल नजीर वाली बेंच ने आदेश सुनाते हुए कहा,' हिंदुत्व किसी और की आस्था को खत्म करने की बात नहीं करता। यह व्यक्ति के अंदर से निकली आस्था है और इसका यह स्वरूप सदियों से रहा है जो दूसरे को प्रभावित नहीं करता। ना ही दूसरे के आड़े आता है।'
हालांकि कोर्ट ने अन्य धर्म के लोगों को विशेष ड्रेस कोड और उचित अंडरटेकिंग देने के बाद मंदिर में दर्शन की इजाजत देने को लेकर प्रबंधन को विचार करने को कहा।
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ राज्यों को ही नहीं बल्कि केंद्र को भी यात्रियों को होने वाली परेशानियों का ध्यान देना चाहिए।
सर्वोच्च न्यायलय ने कहा कि मैनेजमेंट से होने वाली परेशानी, सफाई का ध्यान, मंदिर को मिलने वाले दान का उचित उपयोग और मंदिरों से जुड़ी परिसंपत्तियों की सुरक्षा धर्म से अलग मुद्दे हैं जिस पर राज्य और केंद्र दोनों को संयुक्त रूप से कार्य करना होगा।
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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र से सुझाव मांगा है कि क्या किसी धार्मिक स्थल जहां दूसरे धर्म के लोगों का प्रवेश वर्जित हो, वहां दूसरे धर्म के लोगों के प्रवेश की अनुमति दी जा सकती है या नहीं? खासकर उन धार्मिक स्थलों पर जहां की धार्मिक स्थल के बाहर यह लिखा हो कि गैर धर्म के व्यक्ति का प्रवेश निषेध है।
इस मामले पर अगली सुनवाई 5 सितंबर को होगी।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को यह टिप्पणी जगन्नाथ मंदिर परिसर में कुप्रबंधन और सेवकों के गलत आचरण को लेकर दाखिल याचिका को लेकर की।
याचिका में जगन्नाथ मंदिर में श्रद्धालुओं को परेशान करने और वहां के सेवकों की ओर से श्रद्धालुओं को प्रताड़ित करने का आरोप लगाया गया है। यही नहीं मंदिर परिसर में साफ-सफाई और अवैध कब्जे का मसला भी उठाया गया है।
इस मामले मामले में अदालत ने केंद्र, उड़ीसा सरकार और मंदिर की प्रबंधन कमिटी को 8 जून को नोटिस जारी कर दिया था। इसके साथ ही मंदिर में कथित तौर पर श्रद्धालुओं के शोषण को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने तमाम निर्देश भी जारी किए थे।
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Source : News Nation Bureau