सुप्रीम कोर्ट समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए दाखिल की गई विभिन्न याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई दोबारा शुरू हो चुकी है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के तहत भारत में समलैंगिकता एक अपराध है।
इससे पहले पिछले सप्ताह तीन दिनों की लगातार सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एलजीबीटी (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल और ट्रांसजेंडर) समुदाय को समाज में डर के साथ जीना पड़ता है।
पांच जजों की बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि परिवार और सामाजिक दबावों के कारण एलजीबीटी समुदाय को विपरीत लिंग से शादी करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इसके कारण उन्हें मानसिक आघात पहुंचता है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने धारा-377 की संवैधानिकता वैधता पर जनमत संग्रह कराए जाने की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि यह बहुमत के विचार पर नहीं हो सकता है बल्कि संवैधानिक नैतिकता पर नियमित होगा।
LIVE अपडेट्स:
# न्यायालय ने सभी संबंधित पक्षों से कहा कि वे समलैंगिकता मामले में अपने दावों के समर्थन में 20 जुलाई तक लिखित में भी दलीलें पेश करें
# सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस नरीमन ने कहा, 'हमने सेक्स की परिभाषा के दायरे को पहले ही बढ़ा दिया है। आपको कानून की प्राकृतिक प्रक्रियाओं का सम्मान करना चाहिए, अगर कोई सेक्स प्रकृति के नियम के खिलाफ है तो यह वंश-वृद्धि में सहायक नहीं होता है।'
इस मामले पर केंद्र सरकार ने सुनवाई के दूसरे दिन कहा था कि वह इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ता है।
सुनवाई के दूसरे दिन केंद्र ने अपना पक्ष रखा था, जिसमें इस धारा का न तो समर्थन किया गया और न ही इसका विरोध किया गया था। केंद्र ने साफ स्टैंड नहीं लेते हुए मामले को सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ दिया।
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा की पांच जजों की संवैधानिक पीठ कर रही है।
और पढ़ें: केंद्र ने बुलाई सर्वदलीय बैठक, सरकार को घेरने की तैयारी में विपक्ष
इससे पहले संविधान पीठ ने आईपीसी की धारा 377 के विरुद्ध याचिकाओं पर प्रस्तावित सुनवाई स्थगित करने की मांग करने वाली केंद्र सरकार की याचिका खारिज करते हुए 10 जुलाई से सुनवाई शुरू की थी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया था ऐतिहासिक फैसला
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में समलैंगिक संबंधों को दोबारा गैर कानूनी बनाए जाने के पक्ष में फैसला दिया था, जिसके बाद कई प्रसिद्ध नागरिकों और एनजीओ नाज फाउंडेशन ने इस फैसले को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ के पास भेज दिया था।
शीर्ष अदालत ने आठ जनवरी को कहा था कि वह धारा 377 पर दिए फैसले की दोबारा समीक्षा करेगा और कहा था कि यदि 'समाज के कुछ लोग अपनी इच्छानुसार साथ रहना चाहते हैं, तो उन्हें डर के माहौल में नहीं रहना चाहिए।'
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 2013 में दिए अपने फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दो जुलाई, 2009 को दिए फैसले को खारिज कर दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने समलैंगिक सैक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
विवादित धारा 377 एलजीबीटी समुदाय के दो लोगों के बीच संबंधों पर प्रतिबंध लगाती है जिसे 'प्राकृतिक' नहीं माना जाता है।
और पढ़ें: गोरक्षकों पर चलेगा कानूनी डंडा! सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज
Source : News Nation Bureau