Security Breach In Parliament: देश के इतिहास में 2001 का वर्ष भुलाया नहीं जा सकता है. इस दिन लोकतंत्र के मंदिर संसद में आतंकियों ने अपने नापाक इरादों से हमला किया. इस हमले में 9 लोग मारे गए. इस दहला देने वाली घटना को 22 वर्ष बीत गए लेकिन जख्म अब भी ताजा हैं. अभी देश इस दर्द से ऊबर ही रहा था कि 22 वर्ष बाद 13 दिसंबर 2023 को एक बार फिर संसद में कुछ ऐसा हुआ कि हर कोई स्तब्ध रह गया. लोकसभा की कार्यवाही के बीच अचानक दो शख्स दर्शक दीर्घा से घुसे और इधर उधर भागने लगे.
जब इन्हें रोकने की कोशिश की गई तो एक ने अपने जूते के नीचे छिपा स्मोक कैन निकाली और धुआं छोड़ दिया. जबकि दूसरे शख्स टेबल पीटता रहा. हालांकि इन दोनों ही घुसपैठियों को कुछ सांसदों और सुरक्षाकर्मियों ने मिलकर पकड़ लिया. अब इस मामले में आरोपियों से पूछताछ जारी है. इनके इरादों से लेकर इस घटना से जुड़ी हर जानकारी सामने आ जाएगी. लेकिन ये पहली बार नहीं है जब संसद पर हमले या सुरक्षा में चूक हुई है. देश में ऐसा पहले भी हो चुका है.
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कब-कब संसद की सुरक्षा में हुई चूक या घुसपैठ की कोशिश
13 दिसंबर 2023 और 13 दिसंबर 2001 की घटना तो आप लोगों के जहन में ताजा हो गई है. लेकिन इन दिनों ही घटनाओं के अलावा भी दो बार संसद की सुरक्षा में चूक हुई या घुसपैठ की कोशिश की गई.
2016 में हुई थी चूक
संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था. नवंबर का महीना था. दरअसल इससे ठीक पहले देश में एक बड़ा फैसला लिया गया था. ये फैसला था नोटबंदी का. नोटबंदी के दौरान 500 और 1000 रुपए के नोट बंद कर दिए गए थे. इस नोटबंदी से नाराज एक शख्स सुरक्षा में सेंध लगाकर संसद की दर्शक दीर्घा तक पहुंच गया और फिर यहां से उसने कूदकर सदन में आने की कोशिश की. हालांकि इस शख्स को उस दौरान खड़े सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत पकड़ लिया.
इस शख्स का नाम था राकेश बघेल. ये शख्स मध्य प्रदेश के शिवपुरी का रहने वाला था. राकेश बघेल ने संसद में एंट्री के लिए बुलंदशहर के बीजेपी सांसद भोला सिंह के नाम से विजिटर पास बनवाया था. यानी इस शख्स के घुसने का तरीका भी बिल्कुल वैसा ही था जैसा 3 दिसंबर 2023 को रहा. बहरहाल इस मामले में तात्कालीन लोकसभा की स्पीकर सुमित्रा महाजन ने सदन की राय भी मांगी और इसे गंभीर मुद्दा बताया था.
7 नवंबर 1966 में भी दहल उठा था संसद
आजादी के कुछ वर्षों बाद से ही उस दौर के मशहूर संत स्वामी करपात्री महाराज गोहत्या पर रोक लगाने के लिए एक कानून बनाने की मांग कर रहे थे. तात्कालीन इंदिरा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया. लिहाजा स्वामी करपात्री ने 7 नवंबर 1966 को देशभर के साधु संतों से संसद भवन पहुंचने की अपील की. सभी साधु-संत अपने गाय बछड़े लेकर वहां पहुंच गए. गुस्साए संतों ने संसद के बाहर लगे बैरिकेडिंग तक उखाड़ फेंके.
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साधु संतों के बढ़ते आक्रोश के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संसद की सुरक्षा को मद्देनजर शूट एट साइट का ऑर्डर दे दिया. यानी गोली चलाने का आदेश दे डाला. इस गोलीबारी में कई साधु-संत मारे गए. इसके बाद तात्कालीन गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा ने अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था.
HIGHLIGHTS
- संसद की सुरक्षा में चूक की पहले भी हो चुकी है घटनाएं
- 2001 के आतंकी हमले के अलावा दो बार और सुरक्षा में हुई चूक
- 2016 और 1966 में संसद की सुरक्षा पर मंडराया था खतरा
Source : News Nation Bureau