अगले साल होने वाले आम चुनाव से पहले महाराष्ट्र के क्षत्रप और एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इस्तीफा देकर मुंबई से लेकर दिल्ली तक खलबली मचा दी है. शरद पवार 1999 में एनसीपी के गठन के समय से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. बीते साल फिर से उन्हें चार वर्ष के लिए पार्टी प्रमुख चुना गया था. उनकी घोषणा के बाद पार्टी में नए बॉस को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं. वहीं, पार्टी समर्थक उनसे अपने फैसला वापस लेने की मांग कर रहे हैं. जबकि अजित पवार ने समर्थकों से उन्हें दोबारा अध्यक्ष पद पर बने रहने का आग्रह नहीं करने की अपील की है.
सबसे बड़ा सवाल है कि शरद पवार ने यह फैसला पार्टी में चल रही अंदरुनी कलह की वजह से लिया है या 2024 में होने वाले आम चुनाव को लेकर उनका कोई प्लान है. या फिर पार्टी पर अपनी पकड़ और मजबूत करने का कोई योजना है, क्योंकि शरद पवार के हर कदम के मायने होते हैं. 60 साल राजनीति करने वाले सीनियर पवार सियासत की हवा को अच्छी तरह से परखने में माहिर माने जाते हैं. अचानक से अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के मतलब है कि क्या शरद पवार बाला साहब ठाकरे और सोनिया गांधी की राह पर चलना चाहते हैं. क्योंकि बाला साहेब ठाकरे ने भी पार्टी पर पकड़ कम होने से दो बार शिवसेना के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था. हालांकि, बाद में बाला साहेब ठाकरे मजबूती के साथ पार्टी का नेतृत्व करते नजर आए थे.
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बाला साहेब ठाकरे ने भी दो बार अध्यक्ष पद से दिया था इस्तीफा
शरद पवार भी ठाकरे की राह पर तो नहीं हैं, सीनियर पवार को लगता है कि पार्टी में उनकी पकड़ कम हो रही है. क्योंकि हाल ही में उनके भतीजे अजित पवार के बारे में खबर थी कि वह कई विधायकों के साथ भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं. ऐसे में शरद पवार अपनी पार्टी को बचाने के लिए यह कदम तो नहीं उठा रहे हैं. वहीं, सोनिया गांधी की तरह पार्टी की कमान अपने हाथ में तो नहीं रखना चाहते हैं. शरद पवार ने अध्यक्ष पद छोड़ने के साथ ही यह संकेत दिया कि वह पार्टी के लिए आगे भी इसी तरह काम करते रहेंगे. उनके दरवाजे नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए हमेशा खुला है. ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पार्टी अध्यक्ष भले ही कोई हो, लेकिन उसकी कमान शरद पवार के हाथ ही होगी. शरद पवार जानते हैं कि अगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए उनके पास विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए उनके पास पावर है.