इस शुक्रवार को प्रदर्शित विवेक अग्निहोत्री की फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' (The Tashkent Files) स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की संदिग्ध मौत के तार एक और अनसुलझी रहस्यमयी मौत से जोड़ती है. फिल्म में सवाल उठाया गया है कि लाल बहादुर शास्त्री की मौत सिर्फ इसलिए तो नहीं हुई कि उनके हाथ ताशकंद में नेताजी की मौत से जुड़ी कोई खबर लग गई थी! देश के इन दो महान नायकों की रहस्यमयी मौत पर आज तक पर्दा पड़ा हुआ है.
लाल बहादुर शास्त्री की मौत या उनके अंतिम समय से जुड़े दस्तावेज केंद्रीय सूचना आयोग की अनुशंसा के बावजूद अभी भी 'गोपनीय' हैं. तब से लेकर आज तक इसी गोपनीयता ने तमाम तरह की 'कांस्पिरेसी थ्योरीज' (mysterious death) को जन्म दिया है. इन्हें हवा देने का काम किया है लाल बहादुर शास्त्री के साथ ताशकंद गए वरिष्ठ पत्रकार, अंतिम क्षण साथ रहे निजी सहयोगियों (जो खुद बाद में संदिग्ध मौत मारे गए).
खोजी पत्रकारों, उनके परिजनों के उठते सवालों ने. उनकी मौत से जुड़े ऐसे कई पहलू हैं जिनके आधार पर लोग संदेह की अंगुली पूर्ववर्ती खासकर कांग्रेस सरकार पर उठाते रहे हैं. देखते हैं ऐसे कौन से बिंदू हैं, जो लाल बहादुर शास्त्री की मौत को रहस्य के आगोश में लपेटे हुए है, उनकी मौत के 53 साल बाद भी...
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मौका-ए-वारदात पर संदेह पैदा करते सबूत
लाल बहादुर शास्त्री ( Lal Bahadur Shastri) को उनके साथ गए अधिकारियों और अन्य ऑफिशियल स्टाफ से दूर अकेले में रखा गया. साथ गए कुक को भी ऐन मौके बदल दिया गया और उसकी जगह स्थानीय कुक दिया गया. उनका आवास ताशकंद शहर से 15 किमी दूर रखा गया. उनके कमरे में घंटी, फोन तक नहीं था.
कोई पोस्टमार्टम नहीं
शास्त्रीजी के मृत शरीर पर नीले और सफेद धब्बों के अलावा गर्दन के पीछे और पेट पर 'कट' के निशान थे. इसके बावजूद उनके शरीर का पोस्टमार्टम नहीं किया गया. इससे यह रहस्य और गहरा गया कि पोस्टमार्टम भी नहीं हुआ, तो शरीर पर कट के निशान कहां से आए? उनके निजी डॉक्टर आरएन चुग का कहना था कि शास्त्रीजी को दिल से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी.
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मौका-ए-वारदात के गवाह
ताशकंद में शास्त्रीजी की मौत वाली रात दो गवाह मौजूद थे. एक थे उनके निजी चिकित्सक आरएन चुग और दूसरे थे उनके सेवक रामनाथ. दोनों ही शास्त्रीजी की मौत पर गठित संसदीय समिति के समक्ष 1977 में पेश नहीं हो सके. दोनों ही को ट्रक ने टक्कर मार दी. इसमें डॉक्टर साहब मारे गए, जबकि रामनाथ अपनी याद्दाश्त खो बैठे. बताते हैं कि समिति के सामने गवाही से पहले रामनाथ ने शास्त्रीजी के परिजनों से 'सीने पर चढ़े बोझ' का जिक्र किया था, जिसे वह उतारना चाहते थे.
आरटीआई का भी कोई जवाब नहीं
लाल बहादुर शास्त्री को जहर देकर मारने की आशंका से जुड़े आरोपों के मद्देनजर नेताजी पर शोध करने वाले पत्रकार और लेखक अनुज धर ने आरटीआई दाखिल की. इस पर पीएमओ से जवाब आया कि सिर्फ एक अकेला दस्तावेज ही उपलब्ध है. उसे भी पड़ोसी देशों से रिश्ते खराब हो जाने के अंदेशे से सावर्जनिक नहीं किया जा सकता है.
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सीआईए से जुड़ते तार
पत्रकार ग्रेगरी डगलस से साक्षात्कार में सीआईए एजेंट रॉबर्ट क्रोले ने दावा किया था कि शास्त्रीजी की मौत का प्लॉट सीआईए ने तैयार किया था. यही नहीं, उस दावे के मुताबिक डॉ होमी भाभा की हत्या के पीछे भी सीआईए का ही हाथ था. अमेरिका अपनी कूटनीति के तहत भाभा की हत्या करना चाहता था.
किसके आदेश पर दस्तावेज गोपनीय हुए
यह आज तक स्पष्ट नहीं है कि शास्त्रीजी की मौत या उनके अंतिम समय से जुड़े दस्तावेज किसके आदेश से गोपनीय करार दिए गए. किसका आदेश था जो शास्त्रीजी से जुड़े दस्तावेजों को 'टॉप सीक्रेट', 'सीक्रेट' या 'कान्फिडेंशियल' श्रेणी दी गई.
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समिति की पड़ताल सार्वजनिक क्यों नहीं
1977 में शास्त्रीजी की मौत पर एक समिति गठित की गई, जिसे राज नारायण समिति के नाम से जाना जाता है. समिति की सारी पड़ताल भी सामने नहीं लाई गई. वह भी तब जब समिति ने कहा था कि लोगों को शास्त्रीजी की मौत के कारणों के बारे में जानने का हक है.
Source : News Nation Bureau