अपनी प्राचीन परंपराओं और मानवता के कल्याण के लिए शुरू हुई एक मात्र विश्वविद्यालय को आखिरकार विश्व विरासत का दर्जा हासिल हो गया. करीब सवा सौ साल पहले कुछ छात्रों के साथ शुरू विश्वविद्यालय में आज भी छात्रों को पेड़ के नीचे जमीन पर बैठकर पढ़ाने की परंपरा जिंदा है. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) ने शांतिनिकेतन को विश्व धरोहर के रूप में मान्यता दी है. पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित शांतिनिकेतन में नोबेल विजेता और मशहूर कवि, दार्शनिक रविंद्र नाथ टैगोर ने लंबे समय तक वक्त गुजारा था. यह विश्वविद्यालय सिर्फ शिक्षा के लिए नहीं बल्कि अनुसंधान के लिए भी चर्चित है. यह भारतीयों के लिए गर्व और गौरव की बात है. इसी के साथ शांतिनिकेतन भारत का 41वां विश्व धरोहर स्थल बन गया है.
कब शुरू हुई थी विश्वविद्यालय
दरअसल, रवींद्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर ने सन 1863 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में 7 एकड़ में एक आश्रम की स्थापना की थी. बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने इस आश्रम को विश्वविद्यालय बनाया. इस विश्वविद्लाय में विज्ञान, कला के साथ संस्कृति की पढ़ाई शुरू हुई. रवींद्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांतिनिकेतन एक आवासीय विद्यालय और प्राचीन भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक सीमाओं से ऊपर उठते हुए मानवता की एकता के लिए आधारित कला का केंद्र था. मानवता की एकता या "विश्व भारती" को मान्यता देते हुए 1921 में शांतिनिकेतन में एक 'विश्व विश्वविद्यालय' की स्थापना की गई थी.
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पर्यटन का केंद्र है शांतिनिकेतन
शांतिनिकेतन का संचालन सरकार की ओर से किया जाता है. इस यूनिवर्सिटी से संबद्ध 10 उप-संस्थान भी हैं जो उच्च शिक्षा में अपने क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए प्रसिद्ध हैं. इस विश्वविद्यालय में ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डॉक्टरेट स्तर की डिग्री दी जाती है. यहां दुनियाभर की किताबों की लाइब्रेरी भी है. शांतिनिकेतन की प्राकृतिक छटा देखने लायक है और यह देश-दुनिया के लिए पर्यटन का केन्द्र भी है.बता दें कि 2009 में वास्तुकार आभा नारायण लाम्बा और वास्तुकार मनीष चक्रवर्ती ने विश्व धरोहर स्थल के लिए शांतिनिकेतन के नामांकन पर दस्तावेज पहली बार तैयार किया था.
Source : News Nation Bureau