कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खड़गे के तौर पर भले ही वर्षों बाद गैर गांधी अध्यक्ष मिल गया है, लेकिन खड़गे को गांधी परिवार का ही नजदीकी माना जाता है, ऐसे में माना जा रहा है कि, संचालन अप्रत्यक्ष रूप से गांधी परिवार के जरिए होगा. लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव ने गांधी फैमिली के लिए एक खतरे की घंटी जरूर बजा दी है. दरअसल इस चुनाव में भले ही शशि थरूर हार गए हों, लेकिन उनको मिले 1072 वोट गांधी फैमिली को बड़ा संदेश दे गए हैं. अब जरूरत है कि गांधी परिवार समय रहते अगर इस संदेश पर काम शुरू कर देता है तो भविष्य में बड़े खतरे से बच सकता है, वरना थरूर का ये वोट बैंक आने वाले वक्त में गांधी परिवार को बड़ी मुश्किल में डाल सकता है.
थरूर को मिले वोट कांग्रेस को दे सकते हैं चोट
कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हार कर भी शशि थरूर कांग्रेस को एक बड़ा मैसेज दे गए हैं. ये मैसेज है, बदलाव का...क्योंकि शशि थरूर अप्रत्यक्ष रूप से जी-23 सदस्यों के समर्थक रहे हैं और जी-23 ग्रुप की मंशा से हर कोई वाकिफ है, ये ग्रुप संगठन में कई बदलावों पर लगातार जोर देता रहा है. यानी थरूर का समर्थन करने वाले 1072 वोट कहीं ना कहीं संगठन में बदलाव के पक्ष में है. राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा जोरों पर हैं कि, आने वाले समय में ये जनाधार बढ़ा तो पार्टी के साथ गांधी परिवार की मुश्किल बढ़ा सकता है.
1072 वोट के बाद भी दिग्गजों पर भारी थरूर
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे ने भले ही बड़े अंतर से शशि थरूर को हराया हो, लेकिन थरूर को मिले 1072 वोट अब तक के कई दिग्गजों पर भारी पड़े हैं. इनमें शरद पवार और राजेश पायलट जैसे दिग्गज शामिल हैं.
तीन दशक में हुए चुनाव में दूसरे सबसे ज्यादा वोट लाने वाले उम्मीदवार
राजनीतिक जानकारों की मानें तो शशि थरूर ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में बिना दिग्गजों के साथ के ही काफी अच्छा प्रदर्शन किया है. दरअसल बीते तीन दशक में हुए अध्यक्ष पद के चुनाव में केसरी के बाद शशि थरूर दूसरे सबसे ज्यादा वोट अर्जित करने वाले नेता बन गए हैं. वर्ष 2000 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में मुख्य मुकाबला सोनिया गांधी और जितेंद्र प्रसाद के बीच था. इस चुनाव में कुल 7771 वोट पड़े, हालांकि इनमें 229 वोटों को अवैध करार दिया गया जबकि, 7542 वो लीगल रहे, ऐसे में इन लीगल वोटों में से सोनिया गांधी के खाते में 7448 वोट आए, जबकि जितेंद्र प्रसाद को सिर्फ 94 वोटों से ही संतोष करना पड़ा, वहीं इससे पहले यानी 1997 में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था, जिसमें सीताराम केसरी, शरद पवार और राजेश पायलट जैसे दिग्गज नेता मैदान में थे.
इस चुनाव में कुल वोटों की संख्या 7,460 थी, इनमें से केसरी को जहां 6224 वोट मिले, वहीं शरद पवार के खाते में 882 और राजेश पायलट को सिर्फ 354 वोटों से ही संतोष करना पड़ा। ऐसे में शशि थरूर के सामने भले ही कोई गांधी परिवार का सद्सय खड़ा नहीं था, लेकिन खड़गे के सामने भी उन्होंने दूसरे दिग्गज नेताओं के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है.
गांधी परिवार के लिए अब संभलने का वक्त
कांग्रेस अध्यक्ष के पद पर गैर गांधी परिवार का शख्स काबिज तो हो गया, लेकिन गांधी परिवार के लिए चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है, क्योंकि थरूर के वोटों ने गांधी फैमेली के लिए खतरे की घंटी बजा दी. ये घंटी है बदलाव पर नजर रखने की, क्योंकि थरूर को मिलने वाले बदलाव का पक्षधर माने जा रहे हैं. ऐसे में सही समय पर गांधी परिवार ने इन वोटों के टर्नआउट को देखते हुए संगठन में जरूरी बदलावों पर फोकस नहीं किया तो भविष्य में खड़गे बनाम थरूर में जीत थरूर की हो सकती है, भले ही खड़गे जैसे उम्मीदवार पर गांधी फैमिली की हाथ हो.
Source : News Nation Bureau