सवर्ण और सामान्य जाति के लोगों के लिए नौकरी और शिक्षण संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास होने की शिवसेना ने तारीफ की है. लेकिन साथ ही इस फैसले पर बीजेपी नेता के पीएम मोदी की बराबरी डॉ भीमराव अंबेडकर से करने पर शिवसेना ने मुखपत्र सामना के जरिए पीएम मोदी पर हमला बोला है. सामना में लिखा गया है कि सभी धर्मों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण देनेवाला संविधान संशोधन का विधेयक लोकसभा और राज्यसभा में मंजूर हो गया. आर्थिक आधार पर सभी जाति-धर्म के गरीबों को आरक्षण मिलना चाहिए. पेट की कोई जाति नहीं होती. पेट पर जाति मत चिपकाओ, ऐसा स्पष्ट विचार शिवसेना प्रमुख ने समय-समय पर सार्वजनिक रूप से रखा था. इसीलिए आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण की नीति को शिवसेना ने समर्थन दिया है.
सामना में आगे लिखा गया है कि भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने गरीब दलितों को आरक्षण दिलाया था. मोदी ने 10 प्रतिशत सवर्णों को छूट दी है इसलिए मोदी सवर्णों के ‘बाबासाहेब’ होने का साक्षात्कार कुछ लोगों को हुआ है. उत्तराखंड में बीजेपी मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मोदी की तुलना बाबासाहेब आंबेडकर से की है. ऐसी बात कहने से रावत पर टीका-टिप्पणी हो रही है. हालांकि इस हिस्से को छोड़ दिया जाए तो करीब-करीब सभी राजनीतिक दलों ने इस विधेयक का समर्थन किया, यह अच्छा हुआ. अब तक 123 बार संविधान संशोधन हुआ. सवर्णों के लिए 124वीं बार संविधान का संशोधन किया गया.
आगे लिखा गया है कि मतलब सरकार के मन में जब आएगा और वो उनके लिए ठीक-ठाक होगा तो उस समय सरकार आसानी से संविधान संशोधन कर सकती है. संविधान संशोधन अछूत नहीं है, ये बात इस बहाने मोदी सरकार ने स्पष्ट कर दी है. मोदी सरकार का दावा है कि ये विधेयक ऐतिहासिक है और इसका लाभ अब तक आरक्षण से वंचित देश के सभी समाज के गरीबों को मिलनेवाला है. हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी वगैरह समाज इसमें आते हैं. पारसी आदि समाज के व्यक्तियों को हमने याचना करते हुए या भीख मांगते हुए कभी नहीं देखा है. कुछ हद तक ईसाइयों के बारे में भी ऐसा ही कहा जा सकता है मगर हिंदू समाज के ब्राह्मण, ठाकुर, राजपूत, जाट जैसे धनवान समाज के लोगों ने आर्थिक पिछड़ेपन पर आरक्षण की मांग की और उसके लिए वे सड़क पर उतर गए.
गुजरात में पटेल और महाराष्ट्र में मराठा समाज ने यही संघर्ष किया. महाराष्ट्र में ‘मराठा’ समाज को आरक्षण मिला है लेकिन नौकरियां कहां है ये सवाल बरकरार है. नौकरियों का सवाल पूरे देश में है. हिंदुस्थान में 15 वर्ष से ऊपर युवकों की संख्या हर माह 13 लाख से बढ़ रही है. हमारे देश में 18 साल के नीचे के बच्चों को ‘मजदूर’ बनाना कानूनन अपराध है. फिर भी बाल मजदूरी जारी है.
सामाना में आगे लिखा गया है कि हिन्दुस्तान में रोजगार की दर स्थिर रखने के लिए हर साल 70 से 90 लाख नौकरियों का निर्माण होना चाहिए लेकिन इन दिनों गणित बिगड़ा हुआ है. दो सालों में रोजगार के मौके निर्माण होने की बजाय घटे हैं और डेढ़-दो करोड़ रोजगार सरकार की ‘नोटबंदी’ और ‘जीएसटी’ की नीति के कारण डूब गए. रोजगार न होने के कारण युवकों में निराशा और हताशा है. 2018 की बात की जाए तो हिंदुस्थान के रेलवे की 90 हजार नौकरियों के लिए 2.7 मिलियन मतलब 2.7 करोड़ से अधिक उम्मीदवार आवेदन लेकर कतार में खड़े थे. मुंबई में 1 हजार 137 पुलिस पद की भर्ती के लिए 4 लाख से अधिक उम्मीदवार आए. उनमें से कई लोगों की शैक्षणिक योग्यता अधिक थी. 467 लोगों के पास इंजीनियरिंग की डिग्री थी.
सामना में लिखा गया है 230 लोगों के पास बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की मास्टर डिग्री थी तो 1100 लोग ‘पोस्ट ग्रेजुएट’ थे. पुलिस विभाग के इस पद की शैक्षणिक योग्यता सिर्फ 12वीं उत्तीर्ण होने के बावजूद स्नातकों की भीड़ वहां भी नौकरी के लिए उमड़ पड़ी थी. अब 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण की स्थिति भी इससे कुछ अलग होगी, ऐसा नहीं है. 10 प्रतिशत आरक्षण से सक्षम सवर्ण युवकों के हाथ कुछ लगनेवाला है क्या? देश के बेरोजगार युवक ‘पकौड़ा’ तलें, ऐसा आह्वान करनेवाले प्रधानमंत्री जी को आखिरकार 10 प्रतिशत विशेष आरक्षण का ‘सवर्ण’ मध्य निकालना पड़ा. बेरोजगारी ब्रह्म राक्षस है. गरीबी शैतान है. इन दोनों स्तर पर सत्ताधारी असफल साबित हो रहे हैं, उस समय आरक्षण का ‘दांव’ चलना पड़ता है. उत्तर प्रदेश के सवर्ण वोट मिले इसीलिए बीजेपी ने यह खेल खेला होगा तो यह खेल उन्हें महंगा पड़ेगा. सवर्णों के लिए आपने 10 प्रतिशत सीटें आरक्षित कर रखी हैं लेकिन नौकरियों का क्या? ये कब देनेवाले हो? इतना बताओ. सवर्णों को आरक्षण दिया, अब नौकरियां दो!
Source : News Nation Bureau