सामना को शिवसेना का मुखपत्र कहा जाता है और इसमें छपने वाले संपादकीय को शिवसेना की अधिकृत राय ही माना जाता है. इसी कड़ी में स्वतंत्रता दिवस पर पीएम मोदी के भाषण पर अपनी सहमति जताते हुए शिवसेना पार्टी के मुख्यपत्र में कही यह बातें.
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सामना संपादकीय
प्रधानमंत्री मोदी लगातार तेजी से निर्णय लेने लगे हैं. गत 70 वर्षों से भीग रहे कंबल को झटककर समस्याओं को दूर कर रहे हैं. पीएम मोदी से पूछा जा रहा है कि ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून बनाया. कश्मीर से अनुच्छेद 370 निकाल फेंका. अब देश में समान नागरिक कानून कब लागू करेंगे? हमें विश्वास है कि वो दिन भी दूर नहीं है. इस समस्या का भी समाधान हो जाएगा. मोदी और शाह ने इस दिशा में दो कदम पहले ही बढ़ा दिए हैं. पहला कदम अर्थात ट्रिपल तलाक के विरुद्ध कानून. इस कानून के माध्यम से मुस्लिम समाज में प्रचलित ‘बहुभार्या’ प्रथा पर रोक लगाई. मुस्लिम समाज में एक से अधिक पत्नी रखने की धार्मिक ‘छूट’ है. इसलिए ‘हम पांच हमारे पच्चीस’ की जनसंख्या बढ़ानेवाली जो फैक्टरी शुरू थी, उस फैक्टरी पर ‘तालाबंदी’ घोषित कर दी गई.
अब ट्रिपल तलाक देना अपराध साबित होगा. शरीयत या इस्लामी कानून के अनुसार नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं को भारतीय दंड संहिता के आधार पर न्याय मिलेगा. ‘शरीयत’ नामक कानून को ‘निष्क्रिय’ कर सरकार ने समान नागरिक कानून का तिरंगा फहराया ही है. ये पहला कदम मजबूती से उठाया गया. दूसरा कदम कश्मीर से ‘370 और 35-A’ को हटाकर उठाया गया. ये दोनों अनुच्छेद हिंदुस्तानी संविधान और समान नागरिक कानून का रास्ता काटनेवाली बिल्लियां थीं. देश का कानून हिंदुस्तान के एक राज्य में लागू नहीं था, वे राज्य का अलग कानून और ‘निशान’ लेकर हिंदुस्तान की छाती पर बैठे थे.
मोदी सरकार ने छाती पर रखा यह बोझ उठाकर फेंक दिया और समान नागरिक कानून का मार्ग प्रशस्त करनेवाला दूसरा कदम उठाया. इन दोनों देश विरोधी अनुच्छेदों को हटाकर सरकार ने मानो समान नागरिक कानून ला ही दिया है. ट्रिपल तलाक से मुसलमानों की ‘शरीयत’ मतलब उनका ‘पर्सनल लॉ’ चला गया. उस पर्सनल लॉ में किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं, अपनी दाढ़ी सहलाकर ऐसी धमकी देनेवाले कौन से बिल में जाकर छुपे हैं ये तो वे ही जानें. ट्रिपल तलाक प्रथा को बंद करके सरकार ने सभी के लिए एक कानून की नीति स्वीकार की है.
कश्मीर में भी अब देश का कानून चलेगा. गत 70 वर्षों में ये नहीं हुआ था. प्रधानमंत्री मोदी ने ‘समान नागरिक कानून’ की दृष्टि से तीसरा कदम स्वतंत्रता दिवस पर उठाया. प्रधानमंत्री ने लाल किले से परिवार नियोजन का डंका बजाया है. जनसंख्या वृद्धि देश के समक्ष चुनौती है और परिवार नियोजन देशभक्ति है, विश्वासपूर्वक ऐसा कहने के बाद मुसलमान समाज ऐसी बांग न लगाए कि परिवार नियोजन उनकी ‘शरीयत’ में स्वीकार्य नहीं है. जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण रखने की जिम्मेदारी सबकी है.
मुसलमानों जितनी हिंदुओं की भी है. माना कि हिंदुस्तान में हमें नया ‘पाकिस्तान’ नहीं बनाना है. लेकिन हिंदू ये भी ध्यान रखें कि जनसंख्या के मामले में हमें चीन को पीछे नहीं छोड़ना है. ‘बुलेट गति’ से बढ़ रही जनसंख्या हमारे देश की आगामी पीढ़ी के लिए मुसीबत साबित हो रही है. जनसंख्या विस्फोट ही हिंदुस्तान की मुख्य समस्याओं का कारण है. गरीबी, दरिद्रता और बेरोजगारी इसका मूल है. हिंदुस्तान की कुल जनसंख्या के 40 प्रतिशत लोग पूर्ण रूप से शिक्षित नहीं हैं. आज भी 45 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं.
एक बड़ी आर्थिक विषमता भी है. बढ़ती जनसंख्या ने धार्मिक और जातीय अराजकता को निमंत्रण दिया है. 1949 में जब देश का बंटवारा हुआ, उस समय देश में लगभग ढाई करोड़ मुसलमान थे. आज यह ‘बम’ 22 करोड़ के आंकड़े को छू रहा है. पाकिस्तान की जनसंख्या इससे भी कम है. अब तक कहा गया कि इस्लाम में परिवार नियोजन स्वीकार्य नहीं है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाल किले से परिवार नियोजन को देशभक्ति बताने के बाद मुस्लिम समाज को देशभक्ति के प्रवाह में शामिल होना ही पड़ेगा. जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने की मांग की गई है और उस संदर्भ में प्रयास जारी है, ऐसा मोदी ने अपने भाषण में कहा. इसलिए समान नागरिक कानून आ ही चुका है. देश में धर्म के नाम पर कानूनबाजी नहीं चलेगी. देश पर हावी धार्मिक कानून को मोदी सरकार ने तोड़ दिया है. अब देश में एक कानून है. मतलब भारतीय संविधान! यूं तो मजबूत कदम उठाए ही गए हैं. समान नागरिक कानून इससे अलग क्या हो सकता है!
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो