शिवसेना (Shivsena) इन दिनों एक तीर से दो निशाने लगा रही है. चाहे वह औरंगाबाद का नामकरण है या किसान आंदोलन (Farmers Agitation). रविवार को शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में किसान आंदोलन पर केंद्र के रवैये को आधार बनाते हुए शिवसेना ने मोदी सरकार समेत कांग्रेस पर करारा हमला बोला है. मुखपत्र में कहा गया है कि दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन जो कुछ भी हुआ उसके बाद किसानों को देशद्रोही ठहरा दिया गया है. शिवसेना ने तंज कसते हुए कहा है कि कांग्रेस के शासन में भी कुछ अलग नहीं होता था. इसके साथ ही राष्ट्रपति और महाराष्ट्र के राज्यपाल को लेकर भी शिवसेना मोदी सरकार पर काफी हमलावर नजर आई.
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किसानों को उकसाया गया
किसान आंदोलन को लेकर शिवसेना ने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा, गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ओर से निकाली गई ट्रैक्टर रैली में किसान हिंसक हुए, क्योंकि उन्हें उकसाया गया. किसानों को उकसानेवाला और किसानों को लाल किले तक ले जानेवाला आखिरकार भाजपा परिवार से निकला. इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है? सामना में लिखा गया, 'शरद पवार जैसे नेता बार-बार कह रहे हैं कि पंजाब को अशांत न बनाएं. उसके पीछे के सत्य को समझने की मानसिकता सत्ताधारियों की नहीं है. किसानों के नेता राष्ट्रपति भवन में जाकर अपनी व्यथा व्यक्त करके आए, लेकिन लाभ क्या हुआ? मुंबई में किसानों के नेता राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को निवेदन देने निकले तब हमारे महामहिम राज्यपाल के गोवा के दौरे पर होने की बात कही गई. संस्थाओं पर राजनीतिज्ञों को बैठाएंगे तो और क्या होगा?'
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1975 में इंदिरा गांध ने भी ऐसा ही किया था
शिवसेना के मुखपत्र में इसके साथ ही कांग्रेस पर भी तीखा हमला बोला गया. कहा, 'यह विषय सिर्फ भाजपा तक के लिए ही सीमित नहीं है. कांग्रेस के शासन में भी अलग कुछ नहीं होता था. आज सरकार ने किसानों को देशद्रोही ठहरा दिया है. 1975 में सरकार के खिलाफ आंदोलन करनेवालों को इंदिरा गांधी ने भी 'राष्ट्रद्रोही' कहकर ही कमजोर किया था. सत्ताधारी पार्टी की प्रेरणा से जब दंगे होते हैं तब अहिंसा पर दिए गए प्रवचन उपयोगी सिद्ध नहीं होते हैं. अंतत: प्रधानमंत्री, गृहमंत्री की कुछ जिम्मेदारी है कि नहीं?' अखबार में साथ ही लिखा, 'दिल्ली में 26 जनवरी को इतना बड़ा हिंसाचार हुआ, इस पर न तो प्रधानमंत्री बोले और न ही हमारे गृहमंत्री. मोदी व शाह आज प्रमुख संवैधानिक पदों पर बैठकर देश का नेतृत्व कर रहे हैं. पंजाब के किसानों से ऐसा बर्ताव करना मतलब देश में अशांति की नई चिंगारी भड़काना है.' इशके पहले भी किसान आंदोलन को लेकर शिवसेना मोदी सरकार पर काफी मुखर रही है.