प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को मानहानि मामले में कारावास की सजा सुनाई गई है. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें पांच महीने की सजा सुनाई है. पाटकर को यह सजा 23 साल पुराने मामले में सुनाई गई है. गैर-लाभकारी संगठन, नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के तत्कालीन अध्यक्ष वीके सक्सेना ने मामला दर्ज करवाया था. वीके सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के उप राज्यपाल के रूप में कार्य कर रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को कारावास की सजा सुनाई है. अदालत ने उन्हें 10 लाख के मुआवजे की भी सजा दी है.
10 लाख के मुआवजे की भी सजा
बता दें, मजिस्ट्रेट शर्मा ने पाटकर को मानहानि का दोषी पाया और उन्हें तत्कालीन अध्यक्ष की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के एवज में मुआवजे का भुगतान करने के लिए कहा है. मुआवजा राशि 10 लाख रुपये है. हालांकि, अदालत ने उनकी सजा को एक अगस्त तक के लिए निलंबित किया है. जिससे वह आदेश के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील कर सकें. सुनवाई के दौरान, न्यायाधीश ने कहा कि मैं उम्र और बीमारी को देखते हुए अधिक सजा नहीं सुना सकता.
24 मई को पाटकर को पाया गया दोषी
अदालत ने 24 मई को पाटकर को दोषी पाया. अदालत ने कहा कि यह अब साबित हो गया है कि पाटकर ने यह जानते हुए भी विज्ञप्ति प्रकाशित की कि इससे शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा. इस वजह से कोर्ट आपको आईपीसी की धारा 300 के तहत दोषी ठहराता है.
पाटकर ने कहा- फैसले को चुनौती दूंगी
पाटकर ने कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया दी है. पाटकर का कहना है कि सत्य को कभी भी पराजित नहीं कर सकते. मैंने किसी को बदनाम करने की कोशिश नहीं की है. हम सिर्फ अपना काम करते हैं. हम अदालत के फैसले को चुनौती देंगे.
अब जानें आखिर क्या है पूरा मामला
सक्सेना और पाटकर के बीच साल 2000 से कानूनी लड़ाई जारी है. सक्सेना उस वक्त अहमदाबाद की एनजीओ के चीफ थे. जनवरी 2001 में सक्सेना ने आरोप लगाया कि 25 नवंबर 2000 को पाटकर ने देशभक्त का सच्चा चेहरा नाम से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी. इसमें उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के लिए झूठे लांछन लगाए गए.
Source : News Nation Bureau