सुप्रीम कोर्ट में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों को लेकर सुनवाई चल रही है. इस मामले में सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता याचिकाकर्ताओं के वकीलों की ओर से रखी दलीलों का जवाब दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की सबसे बड़ी प्राथमिकता है. हम न केवल सीमा पार आंतकवाद से पीड़ित हैं, बल्कि इस आतंकवाद को कुछ स्थानीय अलगाववादी लोगों की शह भी मिलती रही है.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि 1947 से जम्मू-कश्मीर सीमा पार आंतकवाद को झेलता रहा है. उन्होंने बताया कि कैसे जम्मू-कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद स्थानीय लोगों को इसके लाभ मिलने वाले हैं. मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को न केवल कुछ लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी की रक्षा करनी है, बल्कि एक बड़ी तादाद के मूल अधिकार भी सुरक्षित रहे. ये सुनिश्चित करना भी सुप्रीम कोर्ट का दायित्व है.
तुषार मेहता ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में लोगों से अधिकार छीने नहीं गए हैं, बल्कि उन्हें अधिकार मिले हैं. 106 पीपल फ्रेंडली क़ानून जो पहले राज्य में लागू नहीं थे, अब वहां लागू हो गए हैं. मैं जम्मू-कश्मीर में हॉस्पिटल, सार्वजनिक स्थानों के तमाम वीडियो को दिखा सकता हूं कि कैसे वहां हालात सामान्य है. मुझे नहीं मालूम की है कि याचिकाकर्ता कश्मीर की ऐसी तस्वीर क्यों पेश कर रहे हैं. सॉलिसिटर जनरल ने आगे कहा कि जम्मू-कश्मीर में इससे पहले शिक्षा का अधिकार लागू नहीं था, लेकिन एक भी आदमी कोर्ट से ये मांग नहीं करने आया कि राज्य के बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार लागू कराया जाए. वैसे भी जम्मू में सिर्फ लोगों की मीटिंग करने पर रोक लगाई गई थी, लेकिन वैसे किसी के आवागमन पर कोई रोक नहीं लगाई थी. कई बार कोर्ट के सामने ग़लत जानकारी पेश कर गुमराह किया जाता है.
तुषार मेहता ने फिर से जोर देकर कहा कि राज्य के लोगों से अधिकार छीने नहीं गए हैं, बल्कि 70 सालों में पहली बार उन्हें उनके अधिकार मिले हैं. ज़मीन स्तर पर लोकतंत्र स्थापित हुआ है. मेहता ने स्थानीय पंचायत, सफाई कर्मचारियों, अनुसूचित जाति/जनजाति पर पड़ने वाले असर का हवाला दिया है. उन्होंने आगे कहा कि अब राज्य से बाहर शादी करने वाली महिलाओं के हितों को सुरक्षित रखे जाएंगे. उन्होंने 1990 के बाद जम्मू-कश्मीर में हिंसक घटनाओं का हवाला देते हुए ये साबित करने की कोशिश की कि कैसे आर्टिकल 370 पर अंतिम निर्णय लेना ज़रूरी हो गया था. कहा- राज्य में बहुत कम प्रतिबंध इसलिए लगाए गए, ताकि राज्य के लोगों की ज़िंदगी और सम्पति की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए. अभी भी इंटरनेट के अलावा सब कुछ सामान्य है.
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तुषार मेहता ने कहा कि ये कहना कि एक आदेश के जरिये पूरे राज्य में प्रतिबंध लागू कर दिए गए ग़लत दलील है. स्थानीय अधिकारियों की जानकारी और खतरे की आशंका के आधार पर प्रतिबंध लगाए गए हैं. जम्मू-कश्मीर के सात पुलिस स्टेशन में पहले दिन से कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है. लद्दाख में कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है. राज्य की ज़्यादातर जनता शांति चाहती है और कुछ तत्त्वों से उसके हितों की रक्षा करना सरकार का दायित्व है. मेहता ने एक-एक करके प्रतिबंध हटाने का सिलसिलेवार ब्यौरा भी कोर्ट के सामने रखा. उन्होंने कहा कि चार सितंबर तक सभी लैंड लाइन सेवा वहां बहाल कर दी गई. टेलोफोन सर्विस वहां जारी है. सिर्फ इंटरनेट अभी नहीं है. 27 अगस्त से स्कूल खुलने शुरू हो गए. 23 अक्टूबर तक सारे स्कूल खुल गए हैं.
तुषार मेहता ने कहा कि अब राज्य में पंचायती व्यवस्था लागू हो पाएगी. पंचायत को सीधे फंडिग मिल पाएगी. वो अपने विकास के बारे में फैसला ले सकेंगे. लंबे समय से वहां पंचायत चुनाव नहीं हुए हैं. आर्टिकल 370 को बेअसर करने का फैसला ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है. अनुसूचित जाति वालों को भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिल सकेगा. लिंग भेदभाव खत्म हो सकेगा. राज्य से बाहर शादी करने वाली महिलाओं के हित भी सुरक्षित रह सकेंगे. अब राज्य में पॉक्सो, बाल विवाह रोधी क़ानून और घरेलू हिंसा क़ानून लागू हो सकेंगे. लोगों को उनके अधिकार मिले हैं, उनसे छीने नहीं गए हैं. अब समाज के सभी तबकों को रोजगार, संपत्ति, शिक्षा का अधिकार मिल सकेगें. राज्य में केंद्रीय क़ानून के लागू होने के बाद वहां विकास का रास्ता खुलेगा.
तुषार मेहता ने साफ़ किया कि राज्य में पूरी तरह से इंटरनेट पर पाबंदी नहीं है. 280 ई टर्मिनल बनाए गए हैं, जिनके जरिए लोग इंटरनेट सेवा का फायदा उठा सकते हैं. तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ता आर्मी और सुरक्षा बलों के योगदान को कम करके आंक रहे हैं. हकीकत ये है कि उन्होंने बेहतरीन काम किया है. आर्टिकल 370 पर फैसला लेने के बाद राज्य में उनकी कोशिशों के चलते एक भी जान नहीं गई है. अभी कहीं पर भी धारा 144 लागू नहीं है.
तुषार मेहता ने आगे कहा कि सारे अख़बार जम्मू-कश्मीर से प्रकाशित हो रहे हैं, सिवाय कश्मीर टाइम्स के जिनके एडिटर ने ख़ुद ही श्रीनगर से अख़बार न प्रकाशित करने का फैसला लिया है. मेहता ने याचिकाकर्ता की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब आतंकवादी के मारे जाने के बाद हालात बिगड़ने के बाद जम्मू-कश्मीर में प्रतिबंध लगाए गए तब तो याचिकाकर्ता चुप रहे, तब उन्होंने प्रतिबंधों के खिलाफ कोर्ट का रुख नहीं किया.