लाभ के पद के मामले में चुनाव आयोग ने शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की सिफारिश राष्ट्रपति से की है। लाभ के पद मामले में पहले भी चुने हुए प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराया गया है या फिर इस्तीफा देना पड़ा है।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी को 2006 में लाभ के पद मामले पर विवाद खड़ा हुआ था और उन्हें लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर रायबरेली से चुनाव लड़ना पड़ा था।
सोनिया गांधी 2004 में कांग्रेस की अगुवाई में बनी यूपीए-1 की सरकार के दौरान राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था और इसे लाभ का पद माना गया था। ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था।
जया बच्चन पर भी 2006 में आरोप लगा था कि राज्यसभा सांसद होते हुए यूपी फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष के पद पर हैं जो जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन भी है। ऐसे में चुनाव आयोग ने भी इसे 'लाभ का पद' माना और उन्हें अयोग्य घोषित किया गया।
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जहां सोनिया गांधी ने संसद से इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव में जाना उचित समझा। वहीं जया बच्चन ने आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली।
जया बच्चन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी सांसद, विधायक या चुने हुए प्रतिनिधि ने 'लाभ का पद' लिया है तो उसकी सदस्यता जाएगी चाहे भले ही वो वेतन या दूसरे भत्ते ले रहा हो या न ले रहा हो।
लाभ का पद है क्या और इसे लेकर नियम क्या है...
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी दूसरे पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या दूसरी फायदे मिलते हों।
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को दूसरे पदों को लेने से रोका गया है।
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Source : News Nation Bureau