हमारे समाज में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो अपने माता-पिता के बूढ़े होने पर उन्हें घर से निकाल देते है और उन्हें दर दर की ठोकरें खाने पर मजबूर कर देते हैं।
वर्षों की मेहनत से बनाए गए घर और संपत्ति पर अपना कानूनी अधिकार समझते हैं। ऐसे लोगों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट का ये फैसला एक मिसाल है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पैतृक संपत्ति के एक विवाद में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि माता-पिता के घर और संपत्ति पर बेटे का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। माता पिता की मर्जी के बिना बेटा घर में रह तक नहीं सकता और ना ही वो माता पिता के खरीदे गए संपत्ति पर कानूनी दावा कर सकता है।
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब किसी कोर्ट ने कहा है कि मां बाप की संपत्ति पर बेटे का कोई अधिकार नहीं है इससे पहले भी साल 1965 से 1985 तक सुप्रीम कोर्ट में चले एक केस में ऐसा फैसला सुनाया जा चुका है।
साल 1965-1985 तक चले मध्य प्रदेश के हरिशंकर सिंह केस में उनके दो बेटों विनोद कुमार और आनंद कुमार ने आरोप लगाया था कि पिता ने सारी संपत्ति अपने छोटे बेटे के नाम कर दिया और उन्हें कुछ नहीं दिया।
इसके जवाब में हरिशंकर सिंह ने कोर्ट को बताया था कि बुढ़ापे में उनके दोनों बड़े बेटों ने उनकी कोई मदद नहीं की, उनकी सेवा की जगह वो उन्हें कष्ट देते रहे लेकिन उनके सबसे छोटे बेटे और उसकी पत्नी ने उनकी खूब सेवा की और उनका ख्याल भी रखा।
इसलिए वो अपनी सारी संपत्ति अपने छोटे बेटे और बाकी सगे संबंधियों को देना चाहते हैं जिन्होंने उनका ( हरिशंकर सिंह) और उनकी पत्नी का ध्यान रखा।
इसी केस में साल 1992 में कोर्ट ने कहा कि मां की मौत पर उनके अंतिम संस्कार तक में उनके दोनों बेटों ने एक पैसा तक खर्च नहीं किया था, बेटे होने का कोई फर्ज नहीं निभाया, कभी उनकी सेवा नहीं की।
ऐसे में जो बच्चे अपना माता पिता की सेवा नहीं करते, वो समझदारी का परिचय देते हुए उनके साथ नहीं रहते या अपना दायित्व पूरा नहीं करते उन्हें माता-पिता की संपत्ति लेने का कोई हक नहीं है।
Source : News Nation Bureau