कोलंबो से कन्याकुमारी की दूरी महज 290 किमी. है, यानी इतने नजदीक चीन की स्थायी मौजूदगी रहेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि कोलंबो पोर्ट सिटी में इकोनॉमिक जोन बनाना सिर्फ शुरुआत है. हमबनटोटा बंदरगाह बनाने और फिर इसे 99 साल की लीज पर लेने के बाद कोलम्बो में चीन ने एक नया शहर कोलम्बो पोर्ट सिटी बना कर वहां दशकों तक अपने लोगों को बसाने का पूरा इंतज़ाम कर लिया है. जानकार मानते हैं कि चीन की असली साजिश श्रीलंका की तरक्की नहीं, बल्कि यहां के तटों पर अपना न्यूक्लियर बम और सबमरीन रखने की थी.
कहा जा रहा है कि कोलम्बो पोर्ट सिटी श्रीलंका का लघु सिंगापुर या मिनी दुबई की तरह है जिसे चीन ने 665 एकड़ ज़मीन पर 1.4 अरब डॉलर की लागत से बनाया है और वहां 80 हज़ार से अधिक लोग आधुनिक जीवन की सुविधाओं के साथ रह सकते हैं. ऊँची इमारतों वाला और अपने में स्वतंत्र यह इलाक़ा कोलम्बो के मुख्य शहरी इलाक़े से दोगुना बड़ा है और यहाँ ख़ुद की बिज़नेस अनुकूल टैक्स व्यवस्था होगी और यहां श्रीलंका के बाक़ी इलाक़ों से भिन्न विधि व्यवस्था होगी. यह इलाक़ा कोलम्बो के समुद्र तट से लगे इलाक़े पर कृत्रिम ज़मीनी विकास कर बनाया गया है. श्रीलंका के इतिहास में यह सबसे बड़ा अकेला विदेशी निवेश कहा जा रहा है जिसे चीन की इंज़ीनियरिंग फ़र्म चीन कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कम्पनी (सीसीसीसी) ने बनाया है.
गोतबाया ने पहले की थी सौदे की आलोचना, बाद में किया समर्थन
विपक्ष ने आरोप लगाया है कि कोलंबो पोर्ट सिटी के प्रशासन के लिए आयोग गठित करने से संबंधित विधेयक में उसे असीमित अधिकार दिए गए हैं. बिल के जरिये इस पोर्ट सिटी के निर्माण के लिए एक आयोग को मंजूरी दी गई है. 7 सदस्यीय आयोग ही पोर्ट सिटी में प्रवेश, टैक्सेशन आदि से जुड़े सभी फैसले लेगा. श्रीलंकाई संसद ने जिस 7 सदस्यीय आयोग को मंजूरी दी है, उसमें 5 सदस्य श्रीलंकाई और 2 चीन के होंगे. पोर्ट सिटी बना रही कंपनी चीन की सरकार से समर्थित है. आयोग के जरिये चीन यहां शासन करेगा.
कोलंबो पोर्ट सिटी का “इजी बिजनेस रूल्स” मनी लांड्रिंग जा ठिकाना बनने की आशंका!
श्रीलंका में विपक्षी दलों और कई सामाजिक संगठनों ने वहां के सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर कर चीन द्वारा विकसित की जाने वाली कोलंबो पोर्ट सिटी पर सवाल उठाए थे. याचिकाओं में कहा गया है कि देश के बीच में दूसरे देश के बनाए नियम लागू किए जाएंगे जो श्रीलंका के नागरिकों के खिलाफ होंगे. अपनी धरती पर हमें विदेशी फायदे के नियम मानने पड़ेंगे.
क्या है पोर्टसिटी
पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट 1.4 बिलियन डॉलर की परियोजना है. इसके तहत समुद्र में शहर बनाया जा रहा है. इसका निर्माण चाइना कम्युनिकेशंस कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड ने श्रीलंका सरकार के साथ मिल कर रही है. परियोजना पूरी होने पर समुद्री क्षेत्र में जो थल क्षेत्र निर्मित होगा, उससे होने वाली आमदनी का बंटवारा श्रीलंका सरकार और चीनी कंपनी के बीच होगा.
इस परियोजना पर 1.2 बिलियन डॉलर की रकम अब तक खर्च हो चुकी है. पोर्ट सिटी श्रीलंका में चीन के सहयोग से बन रहा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. इसके तहत ढाई लाख वर्ग मीटर इलाके में दफ्तर और खुदरा कारोबार के स्थल बनाए जा रहे हैं.
पोर्टसिटी से लोगों की नाराजगी
कोलंबो दुनिया के 25 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से एक है. पोर्ट को लेकर शुरुआत से ही चिंताएं जताई जाती रही हैं. घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर इसे लेकर चौतरफ़ा आलोचना होती रही हैं. आलोचक इस परियोजना को तंज भरे लहज़े में “एक और चीनी अड्डा” कहकर बुलाते हैं. परियोजना के लिए पत्थरों की निकासी से जैव-विविधता और समुद्री जीवन पर विपरीत प्रभावों को लेकर गहरी चिंता जताई गई है.
मछुआरा समुदायों की ओर से भी इस परियोजना का विरोध किया गया है. उन्हें इस परियोजना से अपनी रोज़ी-रोटी के लिए ख़तरा पैदा होने का डर है. मछुआरों का आरोप है कि परियोजना के लिए रेत निकाले जाने की वजह से मछलियों की तादाद घट गई है. इसके चलते उनकी आय घट गई है.
श्रीलंका में चीन की मदद से बने पोर्ट सिटी प्रोजेक्ट को तगड़ा झटका लगा है. श्रीलंका की आर्थिक बदहाली का असर यहां के कारोबार पर साफ देखने को मिल रहा है. श्रीलंका के हालात को देखते हुए काम को अभी बंद कर दिया गया है.