जम्मू-कश्मीर में गैर मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिए जाने और अल्पसंख्यक आयोग के गठन के मामले में केंद्र और राज्य सरकार आमने-सामने आ चुकी है।
केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया कि राज्य सरकार मीटिंग में शामिल नहीं हो रही है और इससे पहले मीटिंग में लिए गए फैसलों को नहीं मान रही है।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर सरकार ने माइनॉरिटी कमीशन (अल्पसंख्यक आयोग) के गठन के लिए कानून बनाने की बात की थी, लेकिन अब वो खुद इससे पीछे हट रही है।
जम्मू-कश्मीर सरकार ने बताया कि राज्य ने अभी इस पर कोई फैसला नहीं लिया है, वो केंद्र से सहयोग करने के लिए तैयार है। सही वक्त पर फैसला लिया जाएगा।
वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकार मिलकर इस मामले को देखे। अदालत ने सुनवाई को चार हफ्ते के लिए टाल दिया। राज्य सरकार इस बारे में लिए गए अपने स्टैंड को लेकर ब्लू प्रिंट पेश करेगी।
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सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं, सिखों, बौद्धों को अल्पसंख्यकों के लाभ देने और अल्पसंख्यक आयोग बनाने की मांग की गई है।
अदालत वकील (अधिवक्ता) अंकुर शर्मा द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही है। जिसमें यह कहा गया है कि जम्मू-कश्मीर के बहुसंख्यक समुदाय यानी मुस्लिमों को अल्पसंख्यकों के लिए बनी केंद्रीय योजनाओं का लाभ नहीं उठाने दिया जाना चाहिए।
शर्मा ने अदालत को बताया कि राज्य में मुस्लिम कुल आबादी का 68 प्रतिशत हैं और इस प्रकार वे राज्य में 'अल्पसंख्यक' नहीं हैं।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री के 15 सूत्री दिशा-निर्देश के तहत मिलने वाले लाभ राज्य के बहुसंख्यक वर्ग को नहीं दिए जाने चाहिए। शर्मा ने अदालत को बताया कि जम्मू- कश्मीर में कोई राज्य अल्पसंख्यक आयोग नहीं है।
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Source : News Nation Bureau