केंद्र सरकार ने एक ही याचिका पर सुनवाई के चलते सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपना पक्ष रखा है कि राज्य सरकारें अगर चाहें तो अपनी सीमा में हिंदू समेत किसी भी समुदाय को आंकड़ों के आधार पर अल्पसंख्यक घोषित कर सकती हैं. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल एक याचिका पर सुनवाई के चलते दिया. अल्पसंख्यक (Minority) मामलों के मंत्रालय ने एक हलफनामे में कहा, 'यह प्रस्तुत किया जाता है कि राज्य सरकारें उस राज्य के भीतर एक धार्मिक या भाषाई समुदाय को अल्पसंख्यक समुदाय के रूप में घोषित कर सकती हैं. उदाहरण के लिए महाराष्ट्र सरकार ने यहूदियों को अल्पसंख्यक के रूप में अधिसूचित किया है. महाराष्ट्र राज्य के भीतर समुदाय.'
कुछ राज्यों में अल्पसंख्यक भाषाओं का प्रावधान
केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि कर्नाटक सरकार ने राज्य के भीतर उर्दू, तेलुगू, तमिल, मलयालम, मराठी, तुलु, लमानी, हिंदी, कोंकणी और गुजराती भाषाओं को अल्पसंख्यक भाषाओं के रूप में अधिसूचित किया है. हलफनामे में कहा गया है, 'इसके अलावा, राज्य भी उक्त राज्य के नियमों के अनुसार संस्थानों को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में प्रमाणित कर सकते हैं.' हालांकि भाजपा नेता और अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा एक जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों पर कहा कि यहूदी, बहावी और हिंदू धर्म के अनुयायी, जो लद्दाख, मिजोरम, लक्षद्वीप, कश्मीर, नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब में अल्पसंख्यक हैं और मणिपुर, अपनी पसंद के संस्थानों की स्थापना और प्रशासन नहीं कर सकते, यह सही नहीं है.'
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हलफमाने में सरकार ने यह कहा
एडवोकेट उपाध्याय ने अपनी याचिका में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के लिए राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) की वैधता को चुनौती दी थी. साथ ही दलील दी कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी जो लद्दाख, मिजोरम, लक्ष्यदीप, कश्मीर, नगालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, पंजाब और मणिपुर में वास्तविक अल्पसंख्यक हैं, वे अपनी पसंद से शैक्षणिक संस्थान की स्थापना और संचालन नहीं कर सकते, जो पूरी तरह गलत है और हिंदुओं व अन्य अल्पसंख्यक के लिए अन्याय है. याचिका पर अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने साफ कर दिया कि हिंदू, यहूदी, बहाई धर्म के अनुयायी उक्त राज्यों में अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और संचालन कर सकते हैं. यह भी कहा कि राज्य भी अल्पसंख्यक समुदाय अधिसूचित कर सकते हैं.
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धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए है आयोग
हलफनामे में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने 29 अक्टूबर 2004 को धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक राष्ट्रीय आयोग का गठन करने का संकल्प लिया और आयोग के संदर्भ की शर्तें धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के बीच सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों की पहचान के लिए मानदंड सुझाने के लिए थीं. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की स्थापना सकारात्मक कार्रवाई और समावेशी विकास के माध्यम से अल्पसंख्यकों की सामाजिक आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए की गई थी ताकि प्रत्येक नागरिक को एक जीवंत राष्ट्र के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने का समान अवसर मिले.
HIGHLIGHTS
- राष्ट्रीय आयोग अधिनियम-2004 की धारा-2 (एफ) को चुनौती दी गई
- इसके जवाब में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जवाब
- महाराष्ट्र में यहूदियों को राज्य सरकार ने किया है अल्पसंख्यक घोषित