सरकार सूंघने या स्वाद लेने की क्षमता अचानक चली जाने को कोविड-19 की जांच में एक मानदंड के तौर पर शामिल करने पर विचार कर रही है. सूत्रों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. भारत में कोरोना वायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और यह तीन लाख के करीब पहुंचने वाले हैं. पिछले रविवार कोविड-19 पर हुई राष्ट्रीय कार्य बल की बैठक में इस विषय पर चर्चा की गई थी लेकिन इस पर सर्वसम्मति नहीं बन सकी. स्वास्थ्य मंत्रालय में एक सूत्र ने कहा, बैठक में कुछ सदस्यों ने कोविड-19 की जांच में सूंघने या स्वाद ले पाने की शक्ति चले जाने को एक कसौटी के तौर पर शामिल करने का यह कहते हुए सुझाव दिया था कि कई मरीजों में इस तरह के लक्षण देखने को मिल रहे हैं.
एक विशेषज्ञ के अनुसार, भले ही यह लक्षण विशिष्ट तौर पर कोविड-19 से जुड़े हुए नहीं हैं क्योंकि फ्लू या इंफ्लुएंजा में भी व्यक्ति की सूंघने या स्वाद ले पाने की क्षमता चली जाती है लेकिन यह बीमारी के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं और जल्द पता लगाने से जल्दी इलाज में मददगार हो सकते हैं. अमेरिका के राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य संस्थान, रोग नियंत्रण एवं बचाव केंद्र (सीडीसी) ने मई की शुरुआत में कोविड-19 के नये लक्षणों में सूंघने या स्वाद ले पाने की शक्ति खो जाने को शामिल किया था.
कोविड-19 के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की 18 मई को जारी संशोधित जांच रणनीति के मुताबिक, इंफ्लुएंजा जैसी बीमारी (आईएलआई) के लक्षणों के साथ अन्य राज्यों से लौटने वालों और प्रवासियों की ऐसे लक्षण नजर आने के बाद सात दिन के अंदर-अंदर जांच करनी होगी.
आईसीएमआर ने कहा था कि अस्पताल में भर्ती मरीजों और कोविड-19 की रोकथाम के लिए अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों में आईएलआई जैसे लक्षण विकसित होने पर उनकी भी आरटी-पीसीआर जांच के जरिए कोविड-19 की जांच होगी. साथ ही इसने कहा कि किसी भी संक्रमित मरीज के संपर्क में आने वाले ऐसे लोग जिनमें लक्षण नजर नहीं आते और उच्च जोखिम वाले लोगों के संपर्क में आने के बाद पांच से 10 दिन के भीतर एक बार जांच करानी ही होगी.
Source : Bhasha