सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न ट्रिब्यूनल में नियुक्ति को लेकर सरकार के तरीके पर सख्त नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट का मानना था कि सरकार ने इन नियुक्तियों में मनमाना तरीका अपनाया और सुप्रीम कोर्ट जजों की अध्यक्षता वाली सेलेक्ट कमेटी की इन ट्रिब्यूनल में नियुक्ति के लिए की गई सिफारिशों को अहमियत नहीं दी. कमेटी ने सरकार के पास जिन नामो को भेजा, उनमे से कुछ नामों को ही चुना गया, बाकी को यूँ ही छोड़ दिया गया. सरकार ने बाकी नियुक्तियों के लिए नाम वेट लिस्ट से चुन लिया. कोर्ट ने कहा कि सरकार का रवैये के चलते नियुक्ति के लिए सेलेक्शन कमेटी की पूरी मेहनत, पूरी कवायद ही बेमानी हो गई है
NCLT और ITAT का उदाहरण दिया
चीफ जस्टिस एन वी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हमने NCLT की सलेक्शन लिस्ट को देखा है. सेलेक्शन कमेटी ने 9 ज्यूडिशियल मेंबर और 10 टेक्निकल मेंबर की नियुक्ति के सिफारिश की थी. लेकिन सेलेक्ट लिस्ट से 3 ही लोगो को नाम के लिए चुना गया, बाकी नाम की उपेक्षा कर दी गई, इसके बजाए सरकार ने नाम वेट लिस्ट से ले लिए. सर्विस नियमों के मुताबिक आप सेलेक्ट लिस्ट को नज़रअंदाज़ कर वेट लिस्ट से नाम नहीं चुन सकते. यही दिक़्क़त ITAT के लिए हुई नियुक्तियों में भी हुई.
यह भी पढ़ेंः पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह बने उत्तराखंड के नए राज्यपाल, राजभवन में ली शपथ
'सरकार के रवैये से हम बहुत नाख़ुश'
चीफ जस्टिस ने कहा कि जिस अदांज में फैसले लिए जा रहे है, उससे हम बहुत नाखुश है. हम मेहनत कर इंटरव्यू कर लोगों को चुनते है और सरकार उनकी नियुक्ति नहीं कर सकती.मैं खुद NCLT कमेटी का सदस्य है. हमने ज्यूडिशियल मेम्बर्स की नियुक्तियों के लिए 534 और टेक्निकल मेम्बर्स के लिए 400 लोगों का इंटरव्यू लिया. उसके बाद उनको परखकर हमने 10 ज्यूडिशियल मेंबर और 11 टेक्निकल मेम्बर्स की लिस्ट दी.लेकिन सरकार ने नियुक्ति के लिए ज्यूडिशियल मेम्बर्स में से 4 लोगों को चुना, बाकी नाम वेट लिस्ट से ले लिए गए.सुप्रीम कोर्ट जजों ने कोविड महामारी के बीच इन नामों को शार्टलिस्ट करने में जो मेहनत की, सरकार ने उस पर पानी फेर दिया. हमने इस दरमियान देश भर की यात्रा कर नाम शॉट लिस्ट किया था, अपना बहुत वक़्त बर्बाद किया. कोर्ट ने कहा कि हालिया नियुक्तियों को देखे तो ज्यूडिशियल मेम्बर्स के पास महज एक साल का कार्यकाल बचेगा. 62 साल में रिटायर हुए हाई कोर्ट के जजों के नामों की सिफारिश हमने भेजी थी. सरकार ने उन्हें दो साल पेंडिंग रखा. अब जब नियुक्ति हुई है तो उनकी उम्र 64 साल हो चली है 65 साल की उम्र में उन्हें रिटायर हो जाना है. कौन जज एक साल की इस जॉब को पाना चाहेगा.
सरकार की सफाई
सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने हालांकि सफाई दी कि सरकार के पास सेलेक्ट कमेटी की ओर से भेजे गए नामों को नामंजूर करने का अधिकार है ,लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस दलील से संतुष्ट नहीं हुआ. चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून को मानने वाले एक लोकतांत्रिक देश है इस दलील को स्वीकार नहीं जा सकता. जस्टिस नागेश्वर राव ने भी कहा कि इस पूरी सिलेक्शन प्रक्रिया की आखिर अहमियत ही क्या रह जाएगी, अगर सब कुछ सरकार की आखिरी राय पर ही निर्भर करता है.सेलेक्ट कमेटी नामों को शॉर्टलिस्ट करने के लिए बहुत शिद्दत से मेहनत करती है.
यह भी पढ़ेंः गुजरातः भूपेंद्र पटेल कैबिनेट का विस्तार आज दोपहर 2.20 बजे, ये विधायक बन सकते हैं मंत्री
सरकार को दो हफ्ते का वक़्त मिला
बरहाल सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैया को देखते हुए अटॉनी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट को आश्वस्त किया कि सरकार नियुक्ति के लिए भेजे गए नामों पर फिर से विचार करने के लिए तैयार है. 2 हफ्ते के अंदर यह नियुक्तियां हो जाएंगी और अगर नियुक्ति के लिए किसी नाम को सरकार की ओर से खारिज किया जाता है तो सरकार इसके लिए ठोस कारण कोर्ट को बताएगी. बहरहाल कोर्ट ने दो हफ्ते का वक्त देते हुए सरकार से कहा है कि वो ट्रिब्यूनलस में नियुक्तियों को लेकर पूरा प्लान पेश करे, जिन नामों को नामंजूर किया जाता है, उसकी ठोस वजह बताये